Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri

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Page 330
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३०९ ॥ www.kobatirth.org प्रत्यनीक- विषयसुखमां रक्त अने उभय लोकप्रत्यनीक ते चोरी विगेरे करनार २, समूहने आश्रयी त्रण प्रत्यनीक कहेला ले ते आ - कुल एटले एक आचार्यनी परंपराना साधु, तेनो प्रत्यनीक, गण एटले एक सामाचारीवाळा त्रण कुलोनो समुदाय, तेनो प्रत्यनीक, अने संघ एटले सर्व साधुओनो समुदाय, तेनो प्रत्यनीक ३, अनुकंपा - सहाय, तेने आश्रयीत्रण प्रत्यनीक कहल छे, ते आ-तपरवीनो प्रत्यनीक, ग्लान- असमर्थनो प्रत्यनीक अने शैक्ष (नवीन दीक्षित) नो प्रत्यनीक ४, भावने आश्र प्रत्यनीक कहल छे, ते आ-ज्ञाननो प्रत्यनीक - विपरीत प्ररूपणा करनार, दर्शननो प्रत्यनीक- जिनवचनमां शंकादि करनार अने चारित्रनो प्रत्यनीक - चारित्रने दूषित करनार ५, सूत्रने आश्रयीत्रण प्रत्यनीक कहेल छे, ते आ-सूत्रप्रत्यनीक, अर्थ ते निर्वृति अने टीकादिकनो प्रत्यनीक अने ते बन्नेनो प्रत्यनीक ते तदुभयप्रत्यनीक ६. (सू० २०८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टीकार्थ- 'नेरइयाण' मित्यादि० दंडक सुगम छे. विशेष ए के - ' एवं सव्वदेवाणं ति० जेम असुरकुमारोने ऋण शरीर छे एम ज नागकुमारादि भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिकाने छे. एम 'वाउकाइयवज्जाणं' ति० वायुने आहारक सिवाय चार शरीरो छे माटे तेनुं वर्जन जणाच्युं छे. एम पंचेंद्रिय तिर्यंचोने पण चार शरीर छे, मनुष्योने तो पांच शरीर पण होय छे माटे ते अहिं बतावेल नथी. आचारनी स्थितिनुं उल्लंघन करनाराओ तो प्रत्यनीक पण होय छे माटे तेओने कहे छे, 'गुरु'मित्यादि० छ सूत्रो स्पष्ट छे. विशेष ए के तत्त्वने जे कहे ते गुरु, तेने आश्रयीने प्रत्यनीक एटले प्रतिकूल स्थविर - जात्यादिवडे. एओनी प्रत्यनीकता आ प्रमाणे जाणवी जच्चाईहि अवन्नं, विभासइ वट्टइ नयावि उववाए। अहिओ छिद्दप्पेही, पगासवादी अणणुलोमो ॥२११ ॥ For Private and Personal Use Only **X*X** ३ स्थान काध्ययने उद्देशः ४ प्रत्यनीकाः २०७ २०८ सूत्रे ।।। ३०९ ।।

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