Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri
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सूत्र-व्याख्या करवा योग्य,अर्थ- सूत्रनुं व्याख्यान नियुक्ति विगेरे अने तदुभय-ते बन्नेनी. सूत्रादिनी प्रत्यनीकता आ प्रमाणेकाया वया य ते चिय, ते चेव पमाय अप्पमाया य । मोक्खाहिगारियाणं, जोइसजोणीहि किं कजं? ___छकाय अने व्रतो तेज छ, पण बीजा नथी. वळी प्रमाद अने अप्रमाद पण ते ज छे तो सिद्धांतमा वारंवार एजें कथन करवाथी शुं पुनरुक्ति दोष नहिं आये ? तेमज मोक्षना अधिकारी एवा गणधरोने ज्योतिषशास्त्रनुं-अमुक नक्षत्रमा अमुक भोजन करीने कार्यनी सिद्धि करे छे एम कहेबानुं प्रयोजन शुं ? वळी कूर्मोन्नतादि त्रण प्रकारनी योनिनी प्ररूपणा करवानुं प्रयोजन शुं? आवी रीते कहेवू ते सिद्धांतनो अवर्णवाद जाणवो. आधी रीते दृषणर्नु कथन कर, (सू० २०८) कहेल कल्पस्थिति, गर्भज मनुष्योने ज छे, अने नेनुं शरीर माता अने पिताना कारणथी छे माटे ते बन्नेनुं शरीरना अंगोमां हेतुपणुं होते छते तेना विभागने कहे छ
ततो पितियंगा पं० तं०-अट्ठी अट्ठीमिंजा केसमंसुरोमनहे ।
तओ माउयंगा पं० २०-मंसे सोणिते मत्थलिंगे । सू० २०९ मूलार्थ:-पिताना त्रण अंग कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ अस्थि-हाड, २ अस्थिर्नु मध्यरस अने ३ केश-दाढी, मूंछ, रोम, नख. प्रण अंग माताना कहेला छ, ते आ प्रमाणे-१ मांस, २ लोही अने ३ मेद (चरबी) तथा फेफसा विगेरे (मू० २०९)
टीकार्थः-बंने सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के-मात्र पिताना अवयवो-अंगो ते पितृअंगो, प्रायः वीर्यनी परिणतिरूप छे. १ अस्थि
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