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वळी अनुभवनी वस्तु छे के ज्यारे कोईक पुरुष लीला वृक्षनी तरुण शाखाना विस्तारना विवर(मध्य)ना अंतरथी कंईक पण शुक्ल वस्तुने जुवे छे त्यारे ते एम विचारे छे के शुं आ पताका छे ? अथवा बलाका (बगलानी पंक्ति ) छे ? ए प्रमाणे प्रतिनियत धर्मीना विषयमा संशय थाय छे. जो केवल अभेद होय तो पण सर्वथा संशयनी उत्पत्ति ज नहिं थाय, कारण के गुणना ग्रहणथी तेनु (गुणीनु) पण ग्रहण थाय छे. आ सूत्रमा तो अभेद नयनो आश्रय करवाथी 'जीवाइ या' इत्यादि. कहेलुं छे. अहिं तो समय अने आवलिका लक्षण बे अर्थने, जीव अने अजीवरूप द्वयात्मकपणाए कहेवाथी वे स्थानकमां अवतार जाणवो. एवी रीते आगळना सूत्रो पण गणी लेवा. एम जे विशेष छे ते अमे कहीशं. 'आणापाणू' इत्यादि. 'आनप्राणा' विति. उच्छ्वासनिःश्वासकाल छे ते संख्यात आवलिका प्रमाणवाळो छे. कडुं छे केहट्ठस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुच्चई ॥११४॥
हर्षित, ग्लानि-रोग रहित, निरुपकृष्ट-क्षुधा, तृषा, श्रम विगेरेथी रहित प्राणीनो जे एक उच्छ्वासनिःश्वास छ तेने प्राण [आनप्राण] कहेवाय छे. तथा स्तोक, ते सात उच्छ्वासनिःश्वास काल प्रमाणवाळो छे. संख्यात आनप्राणवाळा क्षणो छे. अने सात स्तोक प्रमाण कालवाळो लव कहेवाय छे. ए प्रमाणे जेम पूर्वना त्रण सूत्रमा जीव अने अजीव एची रीते कहेवाय छे एम कह्यु, तेमज बधा य आगळना सूत्रो जाणवा सतोतेर लव प्रमाणवाळा मुहूर्तो होय छे. कधु छ केसत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे । लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्ते वियाहिए ॥११५॥
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