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लिका (२३), पल्योपम अने सागरोपमं (२४), उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी (२५) ए दरेक जीव अने अजीवपणे कहेवाय छे. [१] गाम ने नगर (१), निगम ने राजधानी (२), खेड ने कर्बट (३), मटं [डं]ब ने द्रोणमुख (४), पाटण ने आकर (५), आश्रम ने संवाह (६), सन्निवेश ने घोष (७), आराम ने उद्यान (८), वन ने वनखंड (९), वापी (वाव) ने पुष्करिणी (१०), सरोवर ने सरपंक्ति (११), कूप ( कूओ) ने तळाव (१२), द्रह ने नदी (१३), पृथ्वी (रत्नप्रभादि) ने घनोदधि (१४), वातस्कंध (घनवात वगैरे) ने अवकाशांतर (१५), वलय - पृथ्वीने वेष्टन ( वींटवा) रूप घनोदधि वगेरे ने विग्रह- लोकनाडीना वक्र (१६), द्वीप ने समुद्र (१७), ए बधा य जीव अने अजीवस्वरूप छे. वेल-समुद्रना जलनी वृध्धि ने वेदिका - गढना कांगरा (१८), द्वारदरवाजा ने तोरण (१९), नैरयिको अने नरकावासो, एवी रीते यावत् चोवीश दंडकमां वैमानिक अने वैमानिकना वासो ( विमानो) पर्यन्त जे छे ते सर्व जीव अने अजीव स्वरूप छे (२०-४३), कल्प ते देवलोक, अने ते देवलोकना अंशो ते कल्पविमानवासो (४४), वर्ष (क्षेत्रो) अने वर्षधरपर्वतो (४५), कूट ते शिखर, अने कूटागारो (४६), विजय अने राजधानीओ (४७) ए बधा जे छे ते जीव अने अजीवस्वरूप कहेवाय छे. [२], वृक्षादिकनी छाया अने सूर्यनो आतप (१), ज्योत्स्ना - कान्ति अने अंधकार (२), अवमान - क्षेत्रादिनुं प्रमाण हस्तादि अने उन्मान - कर्षादि ( तोलो वगेरे) (३), अतियानगृहनगर वगेरेना प्रवेशमां जे घरो होय ते अने उद्यानगृह ते बगीचामां रहेला घरो (४), अवलिंब अने सणिप्रपात ते रूढिथी जाणवा (५) बे राशि कहेली छे, ते आ प्रमाणे-जविराशि अने अजीवराशि. ( सू० ९५ )
टीकार्थ :- आ सूत्रोनो अनंतर सूत्रथी आ संबंध छे- पूर्वना सूत्रमां जीव विशेषोनुं उच्चत्व लक्षण ( ऊंचाई ) धर्म कह्यो,
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