Book Title: Sthanang Sutram Sanuvadasya
Author(s): Sudharmaswami, Abhaydevsuri
Publisher: Abhaydevsuri
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पछी कालोद समुद्र होय छे माटे तेनी वक्तव्यता कहे छ-'कालोदे त्यादि० सुगम छे. कालोद समुद्र पछी अंतर रहितपणाथी पुष्करवर द्वीपना पूर्वार्ध, पश्चिमार्ध अने तदुभय प्रकरणोने कहे छे-'पुक्खरे' त्यादि० त्रण सूत्रो पण अतिदेशप्रधानवाळा छे. अतिदेशथी मळेलो अर्थ सुगम ज छे. विशेष ए के-पूर्वार्धता अने अपरार्धता धातकी खंडनी माफक वे इषुका| रपर्वतोथी थयेली जाणी लेवी. भरतक्षेत्र वगेरेनी लंबाई वगेरेनी समानता आ प्रमाणे विचारवी
इगुयालीस सहस्सा, पंचव सया हवंति उणसीया । तेवत्तरमंससयं, मुहविक्खंभो भरहवासे ॥१०३॥ [४१५७९ ३४३] पन्न ट्ठि सहस्साई, चत्तारि सया हवंति छायाला।
तेरस चेव य अंसा, बाहिरो भरहविक्खंभो ॥ १०४॥ [६५४४६ ३३] एकतालीश हजार, पांचसो ने ओगणएंशी योजन अने उपर एक सो तोतेर भाग भरतक्षेत्रनो मुख (अभ्यंतर) विष्कंभ छ. तथा पांसठ हजार, चारसो छेतालीश योजन अने उपर तेर भाग बसो बारीआ भरतक्षेत्रनो बहारनो विष्कंभ छे.
चउगुणिय भरहवासो [विस्तर इत्यर्थः], हेमवए तं चउम्गुणं तइयं। [हरिवर्षमित्यर्थः] हरिवासं चउगणियं, महाविदहस्स विक्खंभो ॥१०५॥
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