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श्रीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद
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सीता अने सीतोदा नदीना बे वनमुख पहोळाईमां चमणा प्रमाणवाळा छे. धातकीखंडना पूर्वार्ध अने पश्चिमार्धमा वर्ष हिमवान आदि पर्वतो विषे अने देवकुरु तथा उत्तरकुरु क्षेत्रने विषे जे पद्म वगेरे द्रहो, गंगा नदी वगेरेना कुंडो अने कुंडोमा रहेला जे गंगाद्वीप वगेरे छे ते जंबूद्वीपमां रहेला द्रह वगेरेनी ऊंडाई अने ऊंचाईवडे समान छे अने लंबाई अने पहोळाईवाडे बेवडा प्रमाणवाळा छे. पूर्वार्ध धातकीखंडना अभिलापवडे जंबूद्वीपनुं प्रकरण ( जंबूद्वीपमां कहेल विषय ) क्यां सुधी कहेतुं ? ते माटे कहे छे-'जाव दोसु वासेसु मणुए 'त्यादि० आ सूत्रथी आगळ जंबूद्वीपना प्रकरणमां चंद्रादि ज्योतिष्कोना सूत्रो कहेला छे ते सूत्रो धातकीखंड अने पुष्करार्धद्वीपना पूर्वार्ध्वादि प्रकरणो मां संभवता नथी; कारण के आ अध्ययनमां बे स्थानकनो अधिकार छे ज्यारे धातकीखंड वगेरेमां तो चंद्र वगेरेनुं बहुपणुं ( घणी संख्या ) छे. कां छे के दो चंदा इह दीत्रे, चत्तारि य सायरे लवणतोए । धायइसंडे दीवे, बारस चंदा य सूराय ॥९८॥
आ जंबूद्वीपमां वे चंद्र (वे सूर्य ) छे, लवणसमुद्रमां चार छे अने धातकीखंडमां बार बार चंद्र अने सूर्य छे. चंदोनुं बेपणुं न होवाथी अर्थात् घणा होवाथी नक्षत्र वगेरेनुं पण वेपणुं न होय. ते कारणथी वे स्थानमां तेनो अवतार (वर्णन ) नथी. जंबूद्वीपना प्रकरणथी धातकीखंडनुं विशेषपणुं देखाडता थका कहे छे-' णवर 'मित्यादि० केवल विशेष ए के-कुरुक्षेत्रना सूत्र पछी जंबूद्वीपना प्रकरणमा 'कूडसामली चेव जंबू चेव सुदंसणे' ति० आ पाठ कहेल छे. अहिं तो जंबूवृक्षना स्थानमां धातकीवृक्ष कहेल छे. ते बन्ने वृक्षनुं प्रमाण जंबूद्वीपना शाल्मलीवृक्ष वगेरेनी जेम जाणवुं. ते बे वृक्षना देवसूत्रने
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२ स्थान
काध्ययने
उद्देशः ३ अपरवर्णनम् १९१-९२१९३ सूत्राणि
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