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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र
सानुवाद
॥ १२८ ॥
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उत्कृष्ट अर्द्ध पल्योपमनुं आयुष्य होय छे. भवनपतिनी देवीओनुं उत्कृष्ट आयुष्य साडाचार पल्योपम प्रमाण होय छे. कां छे केअद्भुटु अद्धपंचम, पलिओम असुरजुयलदेवीणं । सेस वणदेवयाणं, देसूणं अद्धपलिय मुकोसं ॥ ६२॥
दक्षिण दिशाना असुरकुमारनी देवीओनी उत्कृष्ट स्थिति साडात्रण पल्योपमनी अने उत्तर दिशाना असुरकुमारनी देवीओनी साडाचार पल्योपमनी उत्कृष्ट स्थिति होय छे. शेष उत्तर दिशाना नागकुमारादि नत्र भवनपतिनी देवीओनी उत्कृष्ट स्थिति देशे ऊणी एक पल्योपमनी, अने दक्षिण दिशाना नव भवनपतिनी देवीनी तथा व्यंतरनी बन्ने दिशानी देवीनी स्थिति अपल्योपमनी होय छे. ते चे मोटा द्रहना मध्यमां एकेक योजनना लांबा-पहोळा कमळ छे अने ते अर्द्ध योजन जाडा छे, जलमां दश योजन बुडेला छे अने अर्द्ध योजन ऊंचा छे. वळी तेमां वज्रमय मूल, रिष्ठरत्नमय कंद, वैडूर्यरत्नमय नाळ, वैर्यरत्नमय बाह्यपत्र जांबूनद (सुवर्ण) मय अंदरना पत्रो, पीळा सुवर्णनी कर्णिका (डोडो) अने तपावेल सुवर्णनी केशरा तंतुओ छे. ते बे कमलनी वे कर्णिका अर्द्ध योजननी लांबी पहोळी अने एक कोश (बाहल्य) ऊंची छे. तेना उपर वे देवीओना भवन छे. ' एव 'मित्यादि० महाहिमवान पर्वतमां महापद्मद्रह अने रुक्मी पर्वतमां तो महापुंडरीकद्रह छे. ते बने द्रह बे हजार योजन लांबा अने एक हजार योजन पहोळा छे. वे योजनना लांबा-पहोळा कमळवाळा छे, ते वे कमळमां ने देवीओ से छे. महापद्ममां ह्रीदेवी अने महापुंडरकिमां बुद्धिदेवी छे. 'एव' मित्यादि० निषेध पर्वतने विषे तिगिंछिद्रहमां धृतिदेवी अने नीलवान पर्वत पर केशरीद्रह्मां कीर्त्तिदेवी वसे छे. ते बे द्रह चार हजार योजन लांबा अने बे हजार योजन पहोळा छे. आ संबंधनी गाथा नीचे प्रमाणे छे
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२ स्थान
काध्ययने
उद्देशः ३ हदनद्यादिस्वरूपम् ८८ सूत्रम्
॥ १२८ ॥