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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १३३ ॥
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(चोथा) आरानी उत्तम ऋधिने पामीने भोगवता थका विचरे छे, ते आ-पूर्वविदेह अने अपरविदेह (१७), जंबूद्वीपना
२ स्थानवे क्षेत्रमा मनुष्यो छ प्रकारना काल संबंधी आयुष्यादि ऋद्धिने पामीने भोगवता थका विचरे छे, ते आ-भरत अने8
काध्ययने ऐवतक्षेत्र (१८). सू० ८९
उद्देशः३ ____टीकार्थ:-आ सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के 'तीताए'त्ति० गयेली उत्सर्पिणीनुं स्वरूप पूर्वनी माफक जाणवू. ते उत्सर्पिणीमां अथवा उत्सर्पिणीना सुषमदुप्पमा-बहु सुखवाळा, समा-चोथा आराना लक्षणरूप काल विभागनी स्थिति (अथवा प्रमाण) ये
सुषमादुःपकोडाकोडी सागरोपम हती (१), एवी रीते जंबुद्दीवे २ इत्यादि कहे, विशेष 'इमीसे' त्ति. आ प्रत्यक्ष वर्तमान पूर्वोक्त
मादिअर्थवाळी अवसर्पिणीमा 'जाव'त्ति० दूपमपमा नामना त्रीजा आराने विषे 'दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले' 'पन्नत्ते' स्वरूपम् कहेल छे. ए ज पूर्वसूत्रथी विशेष छे. पूर्व सूत्रमा होत्य'त्ति कहेल छे (२), 'एव'मित्यादि० 'आगमिस्साए'त्ति आवती उत्स- ८९ मूत्रम् पिणीमां 'भविष्यति' थशे. ए ज पूर्वसूत्रथी विशेष छे (३),'जंबू'इत्यादि० सुषम नामना पांचमा आरामां 'होत्यत्ति हता (४), 'पालयित्यत्ति० पाळनारा, पूर्व सूत्रथी शब्दभेद विशेष छे (५-७), 'जंबू'इत्यादि० 'एगजुगे'त्ति० पांच वर्षनो युग काल विशेष कहेवाय छे. युगना एक वर्षना एक समयमां, 'एगसमए एगजुगे' आ प्रमाणे पाठ होवा छतां पण व्याख्या उक्त क्रमवडे ज करवी. अर्थना संबंधथी आ प्रकारे ज कहेली व्याख्या छ, अथवा बीजीरीते भावना करवी. अरिहंतीना बे वंश-प्रवाह छे, एक भरतक्षेत्रमा उत्पन्न थयेल अने बीजो एरवत क्षेत्रमा उत्पन्न थयेल. 'दसार'त्ति सिद्धांतनी परिभाषावडे वासुदेवो (८-१३),
१ बोजा सूत्रधी तेरमा सूत्र सुधीजें वर्णन टोकाकारे कोइक शब्दनो अर्थ संक्षेपथी करेल छे माटे मूलसूत्रना अनुवादधी जाणी लेवू.
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