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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १३३ ॥ KKKKXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX (चोथा) आरानी उत्तम ऋधिने पामीने भोगवता थका विचरे छे, ते आ-पूर्वविदेह अने अपरविदेह (१७), जंबूद्वीपना २ स्थानवे क्षेत्रमा मनुष्यो छ प्रकारना काल संबंधी आयुष्यादि ऋद्धिने पामीने भोगवता थका विचरे छे, ते आ-भरत अने8 काध्ययने ऐवतक्षेत्र (१८). सू० ८९ उद्देशः३ ____टीकार्थ:-आ सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के 'तीताए'त्ति० गयेली उत्सर्पिणीनुं स्वरूप पूर्वनी माफक जाणवू. ते उत्सर्पिणीमां अथवा उत्सर्पिणीना सुषमदुप्पमा-बहु सुखवाळा, समा-चोथा आराना लक्षणरूप काल विभागनी स्थिति (अथवा प्रमाण) ये सुषमादुःपकोडाकोडी सागरोपम हती (१), एवी रीते जंबुद्दीवे २ इत्यादि कहे, विशेष 'इमीसे' त्ति. आ प्रत्यक्ष वर्तमान पूर्वोक्त मादिअर्थवाळी अवसर्पिणीमा 'जाव'त्ति० दूपमपमा नामना त्रीजा आराने विषे 'दो सागरोवमकोडाकोडीओ काले' 'पन्नत्ते' स्वरूपम् कहेल छे. ए ज पूर्वसूत्रथी विशेष छे. पूर्व सूत्रमा होत्य'त्ति कहेल छे (२), 'एव'मित्यादि० 'आगमिस्साए'त्ति आवती उत्स- ८९ मूत्रम् पिणीमां 'भविष्यति' थशे. ए ज पूर्वसूत्रथी विशेष छे (३),'जंबू'इत्यादि० सुषम नामना पांचमा आरामां 'होत्यत्ति हता (४), 'पालयित्यत्ति० पाळनारा, पूर्व सूत्रथी शब्दभेद विशेष छे (५-७), 'जंबू'इत्यादि० 'एगजुगे'त्ति० पांच वर्षनो युग काल विशेष कहेवाय छे. युगना एक वर्षना एक समयमां, 'एगसमए एगजुगे' आ प्रमाणे पाठ होवा छतां पण व्याख्या उक्त क्रमवडे ज करवी. अर्थना संबंधथी आ प्रकारे ज कहेली व्याख्या छ, अथवा बीजीरीते भावना करवी. अरिहंतीना बे वंश-प्रवाह छे, एक भरतक्षेत्रमा उत्पन्न थयेल अने बीजो एरवत क्षेत्रमा उत्पन्न थयेल. 'दसार'त्ति सिद्धांतनी परिभाषावडे वासुदेवो (८-१३), १ बोजा सूत्रधी तेरमा सूत्र सुधीजें वर्णन टोकाकारे कोइक शब्दनो अर्थ संक्षेपथी करेल छे माटे मूलसूत्रना अनुवादधी जाणी लेवू. For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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