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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ १४०॥
दो अवराओ दो असोयाओ दो विगयसोयाओ दो विजयातो दो वेजयंतीओ दो जयंतीओ दो २ स्थान
काध्ययन अपराजियाओ दो चक्रपुराओ दो खग्गपुराओ दो अवज्झाओ दो अउज्झाओ ३२ (६), दो भद्दसा
उद्देशः ३ लवणा दो गंदणवणा दो सोमणसवणा दो पंडगवणाई, दो पंडुकंवलसिलाओ दो अतिपंडुकंबल
अपरवर्णनम् सिलाओ दो रत्तकंबलसिलाओ दो अइरत्तकंबलसिलाओ दो मंदरा दो मंदरचूलिताओ, धाय-18९१-९२निसंडस्त णं दीवस्स वेदिया दो गाउयाई उद्धमुच्चत्तेणं पन्नत्ता । सू० ९२, कालोदस्स णं समुदस्स ९३ सूत्राणि वेइया दो गाउयाइं उड्डे उच्चत्तेणं पन्नत्ता । पुक्खरवरदीवड्वपुरच्छिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिजेणं दो वासा पं० बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव एरवए चेव तहेव जाव दो कुराओ पं० देवकुरा चेव उत्तरकुरा चेव, तत्थ णं दो महतिमहालता महद्दमा पं० २०-कूडसामली चेव पउमरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे चेव पउमे चेव, जाव छब्धिहपि कालं पञ्चणुभवमाणा विहरति । पुक्खरवरदीवढपञ्चच्छिमद्धे णं मंदरस्त पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दोवासा पं० २०-तहेव नाणतं कृडसामलीचेव महापउमरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे पुंडरीए चेव, पुक्खरवरदीवड्ढे णं दीवे दो भरहाई दो R१४०॥
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