________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीस्था
२स्थानका
नाङ्गसूत्र
ध्ययने
सानुवाद ॥ १३०॥
उद्देशः३ इदनद्यादि
स्वरूपम् ८८ सूत्रम्
XXXXXXXXXXXXXKKKKXx)
वडे बंधायेल छे. ते कुंडनी पूर्व, पश्चिम अने दक्षिण दिशामां त्रण त्रण पगथिया जोवा लायक छे. ते विविध तोरणो सहित छे. मध्य भागमां गंगा देवीनो द्वीप छे. ते द्वीप आठ योजन लांबो-पहोळो, कईक अधिक पच्चीस योजननो परिक्षेप-घेरावावाळो छे. पाणीथी उपर वे कोश ऊंचो अने वज्रमय छे. एक कोश लंबाइवाळा, अर्द्ध कोश पहोळाईवाळा, कंईक न्यून एक कोश ऊंचाईवाळा, अनेक (सेंकडो) स्तंभ(थाभला)वडे जोडायेला गंगादेवीना भवनवडे सुशोभित करायेल छे उपरनो भाग जेनो एवो ते कुंड छ, गंगाप्रपात कुंडथी दक्षिण दिशाना तोरणथी नीकळीने प्रवाहमा (नीकळती वखते) सवा छ योजननी पहोळी, अर्द्ध कोश ऊंडी गंगा नदी उत्तरार्द्ध भरतना चे भाग करती छती सात हजार नदीओ साथे मळीने खंडप्रपातगुफाना पूर्व भागथी नीचे वैताढय पर्वतने विदारीने-भेदीने दक्षिणार्द्ध भरतना वे विभाग करती छती ते विभागना मध्य भागथी जईने, पूर्व सन्मुख वळीने बधी मळीने चौदै हजार नदीओ साथे मुखमां (प्रवेशस्थलमा ) साडाबासठ योजन पहोळी अने सवा योजन ऊंडी एवी ते जगतीने भेदीने पूर्वना लवणसमुद्रमा प्रवेश करे छे. ते गंगाप्रपातद्रह. गंगाप्रपातद्रहना प्रमाणे सिंधुप्रपातद्रह पण व्याख्यान करवा योग्य छ अर्थात् तेनुं व्याख्यान करवू. आकारणथी जबे द्रह, लांबा, पहोळा, ऊंडा अने परिधिवडे समान विशेषणवाळा भाववा. बधा य प्रपातद्रहो दश योजन ऊंडा कहेवा. अहिं वर्षधर पर्वतनी नदीओना अधिकारमां गंगा, सिंधु अने रोहितांशानुं तथा सुवर्णकूला, रक्ता अने रक्तवतीनुंजे कथन नथी कयुं तेनुं कारण ए छे के अहीं बे स्थाननोज अधिकार छे. एक एक पर्वतथी त्रण नदीओना नीकळवाना त्रण त्रण स्थान होवाथी अर्थात त्रण त्रण नदीओ नीकळवाथी अने अहीं वे स्थाननो
१. सात हजार नदीओ उत्तराई भरतनी अने सात हजार दक्षिणाई भरतनी मळीने चौद हमार नदीओ जाणवी.
XXXXXXXxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
॥१३०॥
For Private and Personal Use Only