________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
x
श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥१२९॥
२ स्थानकाध्ययने उद्देशः ३ हृदनद्यादि
स्वरूपम् ८८ सूत्रम्
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX)
नीकळीने हरिवर्षक्षेत्रना मध्य भागमा रहेनार गंधापाती नामना वृत्तवैताढय पर्वतथी एक योजन दूर रहीने, पश्चिमदिशा सन्मुख थइ छप्पन हजार नदीओ सहित समुद्रमा जाय छे. आ हरिकांता नदी रोहित् नदीना प्रमाणथी बमणा प्रमाणवाळी छे. 'एवं' मित्यादि० एवी रीते, 'जंबूहीवे' त्यादि० अभिलापर्नु सूचन करवा माटे कहेल छे. हरित महानदी तिगिछिद्रहनी दक्षिण दिशाना तोरणद्वारा नीकळीने कंइक अधिक सात हजार, चारसो, एकवीश योजन दक्षिण दिशा सन्मुख थइ, पर्वत उपर जईने कंडक अधिक चारसो योजनना प्रमाणवाळा प्रपातवडे हरिकुंडमां पडीने पूर्वना समुद्रमा पडे छे, शेष (लंबाई बगेरे ) हरिकांता नदीनी माफक जाणवू, शीतोदा महानदी तिगिछिद्रहनी उत्तरदिशाना तोरणद्वारा नीकळीने तेटला ज ( पूर्व कहेल कंइक अधिक सात हजार, चारसो, एकवीश योजन) पर्वत उपर उत्तर सन्मुख जइने कंइक अधिक चारसो योजनप्रमाणवाळा प्रपातबडे शीतोदाकुंडमां पडे छे. मगरना मुखनी जीभिका चार योजन लांबी, पच्चास योजन पहोळी अने एक योजननी जाडी समजवी. शीतोदाकुंडथी उत्तरदिशाना तोरणद्वारा नीकळीने देवकुरु क्षेत्रनो विभाग करती थकी, चित्र अने विचित्र कूटवाळा वे पर्वतोने अने निषधद्रहादि पांच द्रहोनो वे भाग करती थकी चोराशी हजार नदीओनी साथे मळवापूर्वक, भद्रशाळ बनना मध्यमां, मेरुपर्वतथी वे योजन दूर रहीने त्यांथी पश्चिम सन्मुख फरीने, विद्युत्प्रभ नामना वक्षस्कार पर्वतना नीचना भागने विदारीने मेरुनी पश्चिम दिशाथी अपर (पश्चिम) महाविदेहना मध्य भागद्वारा एक एक विजयमांथी अठ्यावीश-अठ्यावीश हजार नदीओ साथे मळीने, जयंतद्वारनी नीचेथी पश्चिम समुद्रमा प्रवेश करे छे. शीतोदा नदी प्रवाहमां तो पञ्चाश योजन पहोळी अने एक योजन ऊंडी छे, त्यारपछी अनुक्रमे वधती वधती मुखमां ( समुद्रमा भळती वखते) पांचसो योजन पहोळी
॥१२९ ॥
For Private and Personal Use Only