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२ स्थानका
श्रीस्थानागसूत्र सानुवाद ॥६७॥
ध्ययने
क्रियाणां द्वैविध्यम् ५८-६० मूत्राणि
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बे क्रिया कहेली छे, ते आ प्रमाणे-प्राणातिपात क्रिया अने अप्रत्याख्यान क्रिया १०, प्राणातिपात क्रिया के प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे-स्वहस्तपाणातिपात क्रिया अने परहस्तप्राणातिपात क्रिया ११, अप्रत्याख्यान क्रिया के प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे-जीवअप्रत्याख्यान क्रिया अने अजीवप्रत्याख्यान क्रिया १२, बे क्रिया कहेली छे-आरंभिकी अने पारिग्रहिकी १३, आरंभिकी क्रिया ये प्रकारे कहेली छे, ते आ-जीवआरंभिकी अने अजीवआरंभिकी १४, एवी रीते पारिग्रहिकी क्रिया पण वे प्रकारे छे, ते आ-जीवपारिग्रहिकी अने अजीवपारिग्रहिकी १५, वे क्रिया कहेली छे, ते आ-मायाप्रत्ययिकी अने मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी १६, मायाप्रत्ययिकी चे प्रकारे छे, ते आ-आत्मभाव वंकनता( ठगवारूप) अने परभावबंकनता १७, मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी बे प्रकारे छे, ते आ-ऊनातिरिक्ति ( ओछु अने अधिक कहेवारूप ) मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी अने तद्व्यतिरिक्त ( विपरीत-आत्मादि नथी एम कहेवारूप ) मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी १८, बे क्रिया कहेली छे, ते आ-दृष्टिकी अने पृष्टिकी १९, दृष्टिकी बे प्रकारे कहेली छे, ते आ-जीवदृष्टिकी अने अजीवदृष्टिकी २०, एवी रीते पृष्टिकी वे प्रकारे छे, ते आ-जीवपृष्टिकी (स्पर्श करवारूप) अने अर्जावपृष्टिकी २१, बे क्रिया कहेली छे, ते आ-प्रातीत्यिकी (बाह्य वस्तुने आश्रयीने थयेली) अने सामंतोपनिपातिकी (घणा मनुष्योनी प्रशंसा वगेरेथी थयेली) २२, प्रातत्यिकी क्रिया के प्रकारे छे, ते आ-जीवप्रातीत्यिकी अने अजीवप्रातीत्यिकी २३, एवी रीते सामंतोपनिपातिकी क्रिया के प्रकारे छे, ते आ-जीवसामंतोपनिपातिकी अने अजीवसामंतोपनिपातिकी २४, बे किया कहेली छे, ते आ-स्वहस्तिकी अने नैसृष्टिकी ( फेंकवाथी थयेली) २५, स्वहस्तिकी क्रिया बे प्रकारे छे, ते आ-जीवस्वहस्तिकी अने अजीवस्वहस्तिकी २६, एवी रीते नैसृष्टिकी पण वे प्रकारे छे २७, वे क्रिया कहेली छे, ते आ-आज्ञापनिकी (हुकम करवाथी
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