________________
Shri Mahavir Jain Aadhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
XXXXX
मूलार्थः-पृथ्वीकायिक चे प्रकारे कया छे, ते आ प्रमाणे-मूक्ष्म अने बादर (१), एवी रीते अपकायिकथी यावत् वनस्पतिकायिकना बब्बे भेद कह्या छे, ते आ-सूक्ष्म अने बादर (२-५), वे प्रकारे पृथ्वीकायिक कह्या छे, ते आ-पर्याप्तक अने अपर्याप्तक (६), एवी रीते अप्कायिकथी यावत् वनस्पतिकायिकना बब्बे भेद जाणवा (७-१०), वे प्रकारे पृथ्वीकायिक कह्या छे, ते आ-परिणत (अचित्त ) अने अपरिणत ( सचित्त ) (११), एवी रीते अप्कायिकथी यावत् वनस्पतिकापिकना बब्बे भेद जाणवा (१२-१५), वे प्रकारे द्रव्यो कह्या छे, ते आ-परिणत ( अपेक्षित अन्य परिणामने पामेला ) अने अपरिणत (बीजा परिणामने नहि पामेला) (१६), चे प्रकारे पृथ्वीकायिक कह्या छ, ते आ-गतिसमापनक अने अगतिसमापनक (१७), एवी रीते अपकायिकथी यावत् वनस्पतिकायिकना बब्बे भेद जाणया (१८-२१), बे प्रकारे द्रव्यो कया छे, ते आगतिसमापन्नक (विग्रहगतिने प्राप्त थयेला) अने अगतिसमापन्नक (पोताना स्थानमा रहेला) (२२), वे प्रकारे पृथ्वीकायिको कह्या छे, ते आ-अनंतरावगाढ अने परंपरावगाढ (२३), एवी रीते अप्कायिक, तेजोका वायुका वनस्पतिका० अने द्रव्यो बब्बे प्रकारे जाणवा. (२४-२८) (सू० ७३)
टीकार्थः-पृथ्वी ए ज काय छे जेओने ते पृथिवीकायिनः, अहिं समासांतविधिमा स्वार्थिक प्रत्यय होवाथी पृथवीकायिक, अथवा पृथ्वी ए ज शरीर छ जेओने ते पृथ्वीकायिक. (अहिं तद्धित ठक् प्रत्ययनो इक थयेल छे). जे सूक्ष्मनामकर्मना उदयथी सूक्ष्म जीवो छे ते सर्वलोकमां व्यापक छ अने बादरनामकर्मना उदयथी वर्तनार बादर जीवो, पृथ्वी अने पर्वत
XXXXX
For Private and Personal Use Only