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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥१०८
२स्थानका
ध्ययने उद्देशः३
भाषाशब्दादि ८१ सूत्रम्
शब्दना जेबो. (१), भाषाशब्द बे प्रकारे कहेल छे, ते आ-अक्षरना संबंधवाळो अने अक्षरना संबंध वगरनो (२), नोभाषाशब्द | चे प्रकारे कहेल छे, ते आ-आतोद्य-ताडन करवाथी थयेल शब्द अने नोआतोद्य-ताडन वगर थयेल शब्द (३), आतोधशब्द | वे प्रकारे कहेल छे, ते आ-तत (वीणा) वगेरेनो अने वितत-चामडाथी मढेल अने तंत्री रहितनो (४), तत पण वे प्रकारे कहेल छे, ते आ-घन अने सुषिर-पोलुं (५), एम वितत पण बे प्रकारे छ (६), नोआतोद्य शब्द बे प्रकारे छे, ते आ-भूषणशब्द-झांझर वगैरे
भूषणनो शब्द अने नोभूषणशब्द-भूषण सिवायनो (७), नोभूपणशब्दबे प्रकारे छे, ते आ-तालजन्य शब्द-हाथना तालथी थयेल | ते तालशब्द अने लत्ति ( कांसीनो ) शब्द (८). बे स्थान( कारण )वडे शब्दोनी उत्पत्ति थाय, ते आ-एकत्रित थतां अथवा | ताडना करातां पुद्गलोथी शब्दोनी उत्पत्ति थाय, अने भेद थतां एटले चीरातां पुद्गलोथी शब्दोनी उत्पत्ति थाय. (सू०८१) ___टीकार्थः-आ सूत्रनो पूर्व सूत्रनी साथे नीचे प्रमाण संबंध छे-अहिं बीजा उद्देशकना अंत्य सूत्रमा देवोना शरीरनुं निरूपण कयु पण ते शरीरवाळा तो शब्दादिना ग्राहक होय छे, माटे अहिं प्रथम शब्दनु निरूपण कराय छे. आ प्रमाणे संबंधनी व्याख्या सुगम छे, विशेष ए के भाषाशब्द-भाषापर्याप्तिनामकर्मना उदयथी प्राप्त थयेल जीवनो शब्द, अने बीजो नोभाषाशब्द (१), अक्षरसंबंध-अक्षरना उच्चारवाळो अने बीजो नोअक्षरसंबंध-अक्षरना उच्चार बगरनो (२), आतोद्य-ढोल वगेरेनो जे शब्द ते आतोद्य शब्द अने नोआतोद्य-वंश (बांसडा) वगेरेने फाडवाथी थयेल शब्द ते नोआतोद्य शब्द (३), तंत्री तेमज चर्म वगेरेथी बंधायेल जे आतोद्य ते ततशब्द (४) ते किंचित् घन ( निविड ), जेम पिंजनिक (पीजण ) वगेरे, अने कांइक शुषिर ( पोकळ ), जेम वीणा, पटह वगेरे, तेनाथी उत्पन्न थयेल जे शब्द ते घन अने शुषिर कहेवाय छे. (५), वितत-ततथी विलक्षणं (भिन्न),
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