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ओगणीशमो भाग जाणवो. एवी रीते ऐवत क्षेत्रमा जाणवू. तथा अविशेष-पहोकाइथी बन्ने आ प्रमाणे छे-पंच सए छब्बीस, छच्च कला वित्थडं भरहवासं ति० पांचसो छवीस योजन अने छ कला अधिक भरतक्षेत्र पहोळु छे. एज प्रमाणे ऐरवत क्षेत्रनुं पण पहोळाईपणुं जाणवं. अनानात्व-बन्ने क्षेत्र संस्थानथी परस्पर सरखा छे. परिधि एटले जीवा अने धनुष्ठर्नु जे प्रमाण ते परिधि. तेमां जीवातुं प्रमाण उपर कहेलुं छे, धनुपृष्ठनुं प्रमाण नीचे प्रमाणे जाणवू. . चोद्दस य सहस्साई, पंचेव सयाई अटुवीसाइं। एगारस य कलाओ, धणुपुटुं उत्तरद्धस्स ॥४०॥
चौद हजार पांचसो अध्यावीश योजन अने अग्यार कला अधिक उत्तर भरतार्द्धनुं धनुपृष्ठ छे. जेम भरतर्नु कथु तेम ऐरवतर्नु पण जाणी लेवु. अथवा बहुसमतुल्य वगेरे पदो एकार्थवाळा छे. अतिशयार्थपणुं होवाथी पुनरुक्ति दोष नथी. कधु छ के-अनुवाद, आदर, वीप्सा-वे वार उच्चार, अतिशयार्थ, विनियोग हेतु, असूया-गुणमां दोपर्नु आरोपण, कंइक संभ्रम, विस्मय, गणना अने स्मरण-आ अर्थामा पुनरुक्ति दोष नथी. ते वे क्षेत्रो, आ प्रमाणे-भरहे चेव ' त्यादि० 'उत्तरदाहिणणं' आ पाठने यथासंख्य (क्रम) न्यायनो आश्रय न करवाथी अने यथासत्ति (जेम रहेल छे तेम ) न्यायनो आश्रय करवाथी. जंबूद्वीपना दक्षिण भागमा भरत, हेमवान् पर्वत पर्यंत छ, अने जंबूद्वीपना उत्तर भागमां शिखरी पर्वत पर्यंत ऐखत क्षेत्र छे. 'एब' मिति० भरत अने ऐवतनी माफक आ अभिलापबडे 'जंबृद्दीवे दीवे मंदरस्से' त्यादि० शब्दना उच्चारवडे
१ हरकोइ क्षेत्रनो ' जीवा 'ना पूर्व अने पश्चिमना छेडारूप सीमावडे समुद्र सुधो पहोंचतो जे परिधि ते 'धनुपृष्ठ' कहेवाय छे.
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