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श्रीस्थान नागपत्र सानुवाद ॥११९॥
ध्ययन उद्देशः३ भरतादिक्षेत्रस्वरूपम् ८६ सूत्रम्
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बीजा ये सूत्र कहेवा. ते बेमा आ विशेष छे के 'हेमवए चेवे' त्यादि० हेमवंत क्षेत्र (मेरुनी) दक्षिण दिशाए हिमवान अने महाहिमवान् पर्वतनी मध्यमां छे, हैरण्यवतक्षेत्र मेरुनी उत्तर दिशाए रुक्मी अने शिखरी पर्वतनी मध्यमा छ, हरिवर्षक्षेत्र मेरुनी दक्षिण दिशाए महाहिमवान् अने निषधपर्वतनी मध्यमां छे, रम्यकर्ष मेरुनी उत्तरदिशाए नीलवान अने रुक्मीपर्वतना मध्यमां छे. (१). 'जंबृद्दीवे' त्यादि. 'पुरच्छिमपञ्चत्थिमेणं' त्ति० पुरस्तात् पूर्वदिशामां, पश्चात्-पश्चिम दिशामां यथाक्रमे पूर्व एवो विदेह ते पूर्व विदेह, एम ज अपर ( पश्चिम ) विदेह, आ बन्नेनुं लंबाई विगेरेनुं वर्णन अन्य ग्रंथोथी जाणवू. जंबू'इत्यादि मेरुनी दक्षिण दिशाए देवकुरु अने उत्तर दिशाए उत्तरकुरु क्षेत्र छे. ते बन्नेमा पहेलो देवकुरु हाथीना दांतना आकारवाळा विद्युत्प्रभ अने सौमनस नामना बे वक्षस्कार पर्वतवडे घेरायेलो छे, बीजो उत्तरकुरु क्षेत्र तो गंधमादन अने माल्यवान् पर्वतवडे घेरायेल छे. आ देवकुरु अने उत्तरकुरु अर्द्धचंद्रने आकारे छे अने दक्षिण अने उत्तर दिशामां विस्तृत-विस्तारवाळा छे. तेओर्नु प्रमाण नीचे प्रमाणे छे:अट्ठसया बायाला, एक्कारस सहस[स्स?] दो कलाओ या विक्खंभोय कुरूणं, तेवन्नसहस्स जीवा सिं॥४१
देवकुरु अने उत्तरकुरु बन्नेनी पहोळाई इग्यार हजार, आठसो ने बेतालीश योजन अने बे कळा छे अने बन्नेनी जीवा पूर्वथी पश्चिम पर्यंत त्रेपन हजार योजन छे. 'महइमहालय 'त्ति० मोटा 'अतीति अत्यंत-अत्यंत मोटा, महस्घणा तेजना अथवा महोत्सवोना आलय-आश्रयरूप ते महातिमहआलय अथवा महातिमहालय अर्थात् सिद्धांतनी भाषावडे महान
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