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लंबाई, पोळाई, आकार अने परिधिवडे सरखा छे. ते कहे छे-भरत अने ऐवत, एवी रीते आ अभिलापवडे हैमवत अने हरण्यवत बन्ने सरखा छे, हरिवर्ष अने रम्यकवर्ष पण समान छे. (१). जंबूद्वीप नामना द्वीपना मध्यमां मेरुपर्वतनी पूर्व अने पश्चिम दिशाए वे क्षेत्र [ कहेल छे, ते आ ] अत्यंत समतुल्य अने अविशेष छे, यावत् लंबाई वगेरेथी सरखा छे. ते पूर्वविदेह अने पश्चिमविदेह. जंबूद्वीपना मेरुपर्वतनी उत्तर अने दक्षिण दिशाए वे कुरुक्षेत्र [कहेल छे, ते आ] अत्यंत समतुल्य अने विशेष रहित, यावत् लंबाई वगेरेथी सरखा छे. ते देवकुरु अने उत्तरकुरु. ते बन्ने क्षेत्रोमां अतिशय मोटा वे वृक्षो [ कहेला छे, ते [आ] अत्यंत समतुल्य अने विशेष रहित- नाना प्रकारपणाथी रहित, परस्पर एक बीजाने उल्लंघन करता नथी तेम ज लंबाई, पहोळाइ, ऊंचाई, ऊंडाई, संस्थान (आकार) अने परिधिवडे समान छे, ते आ प्रमाणे - कूटशाल्मली अने जंबू- सुदर्शन. ते वृक्षाने विषे महर्द्धिक यावत् महासौख्यवाळा अने एक पल्योपमनी स्थितिवाळा वे देवो वसे छे. ते देवोना नाम आ प्रमाणेगरुड -सुपर्णकुमार जातिनो वेणुदेव अने जंबूद्वीपनो अधिपति अनादृत देव छे. (२)
टीकार्थ :- आ सूत्र सुगम छे, विशेष ए के अहिं जंबूद्वीप प्रकरण छे. जंबूद्वीप परिपूर्ण चंद्रमंडलना आकारवाळो छे, तेनी मध्यमां [रहेल] मेरुनी उत्तर अने दक्षिण दिशाथी अनुक्रमे वर्ष ( क्षेत्रो) ने स्थापन करीने, ते आ प्रमाणेभरहं हेमवयंति य, हरिवासंति य महाविदेहंति । रम्मय एरन्नवयं एरवयं चैव वासाई ॥ ३७ ॥
१ भरत, २ हैमवत, ३ हरिवर्ष, ४ महाविदेह, ५ रम्यकूवर्ष, ६ हैरण्यवत् अने ७ ऐरवत-आ सात वासक्षेत्रो छे. प्रज्ञापकनी अपेक्षाए आ प्रत्यक्ष देखातो भरत क्षेत्र छे तेथी उत्तर दिशाए क्रमथी क्षेत्रनी अपेक्षाए बीजा हैमवतादि क्षेत्रो व्यवस्थित छे.
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