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मूलार्थ:-चे कारणवडे पुद्गलो एकठा थाय छे -बंधाय छे, ते आ प्रमाणे - पोतानी मेळे विस्रसास्वभाववडे पुद्गलो बंधाय छे अथवा पर- बीजा (प्रयोग) बडे पुद्गलो बंधाय छे. (१), वे कारणवडे पुद्गलो भेदाय-जुदा थाय छे, ते आ प्रमाणेपोतानी मेळे अने बजावडे पुद्गलो जुदा थाय छे. (२), वे कारणवडे पुद्गलो सडे छे, ते आ-पोतानी मेळे पुद्गलो सड़े छे अथवा बीजावडे पुद्गलो सडे छे. (३), एवी रीते पडे छे. (४), विध्वंस - विनाश पामे छे. (५). वे प्रकारे पुद्गलो कहेला छे, ते आ प्रमाणे- जुदा थयेला अने जुदा न थयेला (१), बे प्रकारे पुद्गलो कहेला छे, ते आ-पोतानी मेळे भेदाय एवा स्वभाववाळा अने न भेदाय एवा स्वभाववाळा (२), वे प्रकारे पुद्गलो कहेला छे, ते आ-परमाणुपुद्गलो अने नोपरमाणुपुद्गलो (स्कंधो) (३), बे प्रकारे पुद्गलो कहेला छे, ते आ-सूक्ष्मपुद्गलो चार स्पर्शवाळा अने बादरपुद्गलो आठ स्पर्शवाळा (४), बे प्रकारे पुद्गलो कहेला छे, ते आ-सारी रीते मजबूत बंधायला अने मात्र स्पर्श करायेला (५), बे प्रकारे पुद्गलो कहेला छे, ते आ पर्यायातीत पूर्वना पर्यायने छोडेला अने अपर्यायातीत पूर्वना पर्यायने नहि छोडेला (६), वे प्रकारे पुद्गलो कहेला छे ते आ-जीवोए परिग्रहपणे स्वीकारेला ते आत्ता अने जीवोए परिग्रहपणे नहि स्वीकारेला ते अनात्ता (७), बेप्रकारे पुद्गलो कहेला छे, ते आ-इष्टपुद्गलो अने अनिष्ट पुद्गलो (८), एवी रीते कान्त पुद्गलो ( ९ ), प्रिय पुद्गलो (१०), मनोज्ञपुद्गलो (११) अने मनने प्रिय ते मणामा. तेओथी विपरीत अकांत वगेरे जाणवा. (१२). (सू०८२). बे प्रकारे शब्दो कहेला छे, ते आ प्रमाणे जीवे ग्रहण करेला अने जीवे ग्रहण नहि करेला (१), एम इष्ट, कांत विगेरे शब्दो यावत् मणामा पर्यंत, प्रतिपक्ष अनिष्ट वगेरे सहित जाणवा. (२-६). बे प्रकारे रूप कहेल छे, ते आ-जीववडे ग्रहण करायेल अने जीववडे
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