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अंने २ विमानोपपत्रक-अवयकादिमां उत्पन्न थयेला. बीजा पण कहे छ-चारोपपन्नक-ज्योतिष्को, तेना पण बे भेद छे-१ चारस्थितिक-स्थिर ज्योतिप्को, ते अढीद्वीपनी बहार छे, २ गतिरतिक-गतिसमापनको जे अढीद्वीपमा रहेला छे. ते देवोवडे निरंतर जे | पापकर्म कराय छे-बंधाय छे ते पापना फलने देवभवमा रह्या छतां ज केटलाएक देवो भोगवे छे, अने केटलाएक पापना फलने
भवांतरमा वेदे छे. (१), नरयिकोने सदा-निरंतर जे पापकर्म बंधाय छे ते त्यां रह्या छतां पण केटलाएक नारको पापना फळने वेदे छे, अने केटलाएक भवांतरमां गया छतां पापना फळने वेदे छे. एवी रीते यावत् पंचेंद्रियतियंचो सुधी जाणवू. मनुष्योने सदा-निरंतर जे पापकर्म बंधाय छे ते अहिं ज रह्या छतां केटलाएक मनुष्यो पापना फळने भोगवे छे, अने केटलाएक भवांतरमां पण पापकर्मना फळने भोगवे छे. मनुष्यने छोडीने शेष व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिको छे ते एक अभिलापवाळा छ-18 समान पाठवाळा छे (२).
टीकार्थ:-'जे देवे' त्यादि० सूत्रनो पूर्वे कहेल सूत्र साथे संबंध छे. प्रथम उद्देशकना छेल्ला सूत्रमा पादपापेगमन अनशन कडं, तेनाथी केटलाएक जीवोने देवपणुं प्राप्त थाप्त छे, ते कारणथी देव विशेष कहेवावडे तेना कर्मबंधन अने वेदन- प्रतिपादन करता थका कहे छ:-'जे देवे' त्यादि जे सुरो-आगळ कहेवामां आवशे ते वैमानिक देवो, अनशन वगेरेथी उत्पन्न थाय छे, ते केवा छे-'उड्ढ' त्ति. ऊर्ध्वलोकमां उत्पन्न थयेला ते ऊयोपपन्नको वे प्रकारे २-१ कल्पोपपन्नको-सौधर्मादि देवलोकमां उत्पन्न थयेला, तथा २ विमानोपपन्नको-अवेयक अने अनुत्तर विमानोमा उत्पन्न थयेला. विमानोपपन्नको कल्पातीत छे. बीजाचे प्रकार पण कहे छ-'चारोववन्नग' त्ति० चरंति-ज्योतिष्कना विमानो ज्यां भ्रमण करे छे ते
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