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एवो पाठ छे, त्यां आ प्रमाणे अर्थ समजवो-जे असंजीओमाथी नारकादिपणाए उत्पन्न थाय छे ते असंज्ञीओ ज [ अपर्याप्तअवस्थामा ] कहेवाय छे, अने असंाओ नारकादिथी आरंभीने यावत् व्यंतर सुधीमा उत्पन्न थाय छे परंतु ज्योतिष्क अने वैमानिकोने विषे उत्पन्न थता नथी. तेओने असंज्ञीपणानो अभाव होवाथी तेओर्नु अहिं ग्रहण करेल नथी. (९), भाषादंडकमां-भाषापर्याप्तिना उदयमा भाषको छे अने भाषापर्याप्तिनी अपर्याप्तक अवस्थामां अभाषको छे. एकेंद्रियोने * भाषापर्याप्ति नथी तेथी कहे छे-' एवमित्यादि० (१०), सम्यग्दृष्टिदंडकमां एकेंद्रियोने सम्यक्त्व नथी, द्वींद्रियो वगेरेने तो सास्वादन सम्यक्त्व होय, परन्तु एटला माटे कयुं छे के-'एगिदियवज्जा सब्वे 'त्ति० (११), संसारदंडकमां संक्षिप्त-थोडा भववाळा ते परीत्तसंसारिको अने अनंतभववाळा ते अनंतसंसारिको (१२), स्थितिदंडकमां काळ शब्दनो अर्थ काळो वर्ण पण होय, समय शब्दनो अर्थ आचार पण थाय, परन्तु अहिं कालरूप समय ते काळसमय, वर्षना प्रमाणथी संख्या करवा योग्य छे. संख्यात काळसमयरूप स्थिति ( रहेQ ) छे जेओनी ते संख्येयकाळसमयस्थितिको दश हजार वर्ष वगेरे स्थितिवाळा, बीजा पल्योपमना असंख्येयभागादि स्थितिवाळा ते असंख्येयकालसमयस्थितिको जाणवा. 'संखिजकालठिइय'त्ति एवो पाठ पण कोई प्रतमा छे, पण ते सुगम छे. 'एवमिति आ प्रमाणे नारकनी माफक बे प्रकारे स्थितिबाळा दंडको कह्या. शुं बधा य दंडको कह्या ? ए प्रश्नना जवाबमां कहे छे के-एम नहि, पण एकेंद्रिय अने विकलेंद्रियोने वर्जीने असुर वगरे पंचेंद्रियो कह्या, कारण के एकेंद्रियादिनी तो बावीश हजार वर्ष वगेरे संख्यातकाळनी स्थिति छे. पंचेंद्रियो पण शु बधा य कह्या ? आशंकानो जवाब आपे छे के एम नहिं, फक्त व्यंतर पर्यंत (नारकथी व्यंतर सुधीना पंचेंद्रियो), एओ ज
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