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शक्तिरूप आनप्राणपर्याप्ति, ५ वचनने योग्य भाषावर्गणाना पुद्गलोने ग्रहण करीने, भाषापणे परिणमावीने वचनयोगपणे मकवानी शक्तिरूप भाषापर्याप्ति, ६ मनने योग्य मनोवर्गणाना पुद्गलोने लइने, मनपणे परिणमावीने मनयोगपणे मकवानी शक्तिरूप मनपर्याप्ति. आछ पर्याप्तिओ, पर्याप्तनामकर्मना उदयबडे पूर्ण कराय छे. जे जीवो ते पूर्ण करे छे ते जीवो पर्याप्तक अने अपर्याप्तनामकर्मना उदयवडे जे जीवो ते पूरी करता नथी ते अपर्याप्तक कहेवाय छे. आ छ पर्याप्तिओनो एकी साथे आरंभ कराय छ अने अंतर्मुहूत्तवडे पूर्ण थाय छे. तेमा आहारपर्याप्तिने पूर्ण करवानो काळ एक समय ज छे. ते केवी रीते थाय ? ते संबंधमां प्रज्ञापना सूत्र नीचेनो पाठ जणावे छ:-'आहारपज्जत्तीए अपज्जत्तए णं भंते ! जीवे किं आहारए अणाहारए ?, गोयमा ! नो आहारए अणाहारए'त्ति 'हे भगवन् ! आहारपर्याप्तिवडे अपर्याप्त जीव, शुं आहारक छ के अनाहारक छ ? उत्तर-हे गौतम ! आहारक नथी, अनाहारक छे.' ते आहारपर्याप्तिवडे अपर्याप्त विग्रहगतिमा मळे छेहोय छे. जो बळी उत्पत्तिना क्षेत्रमा प्राप्त थयेल पण आहारपर्याप्तिवडे अपर्याप्तक थाय तो आ प्रमाणे उत्तर होवो जोईए'गोयमा ! सिय आहारए सिय अणाहारए'त्ति-क्यारेक आहार होय अने क्यारेक अनाहारक होय. जेम शरीर वगेरे पर्याप्तिओना विषयमा कहेलुं छे के-'सिय आहारए सिय अणाहारएत्ति. (अर्थात् आहारपर्याप्तिना विषयमा 'सिय' शब्द न होवाथी आहारपर्याप्तिने पूर्ण करवानी एक समयनी ज स्थिति होय छे.) ___बळी आहारपर्याप्ति सिवाय पांच पर्याप्तिओ असंख्यात समयवाळी छे अने ते पांचे अंतर्मुहूर्त्तमा पूर्ण थाय छे. अपर्याप्तक तो उच्छ्वासपर्याप्तिवडे अपर्याप्त ज मृत्यु पामे छे, परंतु शरीर अने इंद्रियपर्याप्तिवडे अपर्याप्ता मरता नथी. जे कारणथी
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