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विवक्षावडे दीर्घपणु भाववा योग्य छे. एवी रीते अल्प काल पर्यंत पण कोईएक व्यक्ति गर्दा करे छ, अथवा यावत् दीर्घ काल सुधी ज, तथा इस्त्र (अल्प) काल पर्यंत ज यावत् (एक व्यक्ति गर्दा करे छे ) कारण के अपि शब्द निश्चय अर्थमां छे. अथवा एक ज व्यक्ति के प्रकारे कालभेदवडे भावभेदथी गर्दी करे छे अथवा घणा के थोडा काल पर्यंत ज गर्दा करे छे. (सू०६१). निंदा करवा योग्य भूतकाल संबंधी कोने विषे गर्दा थाय छे अने भविष्यकालमां तो प्रत्याख्यान थाय छे. कयुं छे के-'अईयं निंदामि पडुप्पन्नं संवरेमि अणागयं पच्चक्खामी'ति-अतीतकाल संबंधी पापने हुँ निंदु छु, वर्तमानकालीन पापने संबकै छु ( अटकावू छु ) अने अनागतकालीन पापना पच्चक्खाण करुं छु. आ कारणथी हवे प्रत्याख्यान कहे छे
दुविहे पञ्चक्खाणे पं० २०-मणसा वेगे पञ्चक्खाति वयसा वेगे पच्चक्खाति, अहवा पच्चक्खाणे दुविहे पं० २०-दीहं वेगे अद्धं पच्चक्खाति रहस्सं वेगे अद्धं पच्चक्खाति । सू० ६२, दोहिं ठाणेहिं अणगारे संपन्ने अणादीयं अणवयग्गं दीहमद्धं
चाउरंतसंसारकंतारं वीतिवतेज्जा, तंजहा-विजाए चेव चरणेण चेव । सु० ६३
मूलार्थ:-चे प्रकारे पच्चक्खाण कहेल छे, ते आ प्रमाणे-एक मनवडे पण पच्चक्खाण करे छे, एक वचनवडे पण पच्चक्खाण * करे छे. अथवा पच्चक्खाण बे प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणे-एक दीर्घ (लांबा) काल पर्यंत पण पञ्चक्खाण करे छे, एक अल्प
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