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परिणामथी (बीजा पक्षथी ) ज्ञान सहित क्रियानुंज मोक्षफल छ एम कहेवू योग्य छे. जे तमोए कहेलु के-मंत्रादिना स्मरणात्मक ज्ञानमात्रथी साक्षात् फल मले छे ते विषयमा अमे कहीए छीए-मंत्रोने विषे पण विशेष जाप वगेरे क्रियानो साधनभाव छ अर्थात् मंत्रनी साधना करवी ते क्रिया ज छे, पण मंत्रना ज्ञाननो साधनभाव नथी. अहिं कोइ एम कहे के-आ कथन प्रत्यक्ष विरुद्ध छ कारण के कोइक स्थले मंत्रना चिंतनमात्रना ज्ञानथी इष्ट फल जोवाय छे एम जो तमे कहो, तो अहिं अमे कहीए छीए ते इष्टफल मंत्रना ज्ञानमात्रथी थयेलुं नथी, कारण के ते चिंतनमात्र ज्ञानने क्रिया रहितपणुं छे. अहिं जे ( वस्तु ) क्रिया रहित होय ते आकाशपुष्पनी जेम कार्यने उत्पन्न करनार जोवाती नथी. जे कार्यने उत्पन्न करनार छ ते कुंभारनी जेम अक्रिय होय नहि (क्रिया सहित होय छे), आ कथन प्रत्यक्ष विरुद्ध नथी, केमके ज्ञान साक्षात्फलने नजीक लावनारुं देखातुं नथी. फरी वादी शंका करे छे के-जो मंत्रना ज्ञानवडे थयेल इष्टफळ नथी तो कोनाथी मंत्र- फल थाय छे? आ संबंधमा अमे कहीए छीए-मंत्रजापना समयमा मंत्रना संकेत प्रमाणे मंत्राधीन देवोथी इष्ट फलनी प्राप्ति थाय छे. देवोमां सक्रियपणुं होबाथी क्रियावडे थयेलु इष्टफल छे, परंतु केवल मंत्रना ज्ञानवडे ते साध्य नथी. ( भाष्यकार ) कहे छ के
तो तं कत्तो? [आचार्यः ] भण्णति, तस्समयनिबद्धदेवओवहियं ।
किरियाफलं चिय जओ, न मंतणाणोवओगस्स ॥५॥ आ गाथानो भावार्थ उपर कहेल छे.
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