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किह पडिकुक्कुडहीणो, जुज्झे विवेण उग्गहो ईहा। किं सुसिलिट्रमवाओ, दप्पणसंकेत बिंबंति ॥२०॥
कोई राजाए नटपुत्र भरतनी बुद्धिनी परीक्षा करवा माटे कयु के आ मारा कुकडाने बीजा कुकडा सिवाय तुं युद्ध कराव. आ उपरथी नटपुत्रे मनमा विचार्यु के बीजा कुकडा सिवाय एकलो कुकडो केवी रीते युद्ध करशे ? एम विचार करतां मनमां | एकदम स्फुरी आव्यु के-पोतानुं प्रतिबिंब आगळ जोवाथी अभिमानवडे आ कुकडो युद्ध करशे. आ प्रमाणे सामान्यथी जाण्यु ते अर्थावग्रह नामनो मतिनो पहेलो भेद थयो. ते पछी एवो विचार करे छे के तलावना पाणीमां पडेलु प्रतिबिंब युद्ध करावबा माटे ठीक पडशे के दर्पणमां पडेलु प्रतिबिंब ठीक पडशे ? इत्यादि प्रतिबिंब संबंधी विचारणा ते इहा. एवी इहा थया बाद एवो निश्चय करे छे के पाणी वगेरेमां पडेलुं प्रतिबिंब तो क्षणे क्षणे दूर थाय अने अस्पष्ट होय तेथी युद्ध कराववामां तेवु प्रतिबिंब ठीक नहिं पडे, पण आरीसामां पडेलुं प्रतिबिंब स्थिर अने स्पष्ट होवाथी चरणाघात करवामां ठीक पडशे माटे ते ज (दर्पण ज ) योग्य थशे. ए प्रमाणे विंबविशेषनो जे निश्चय ते अपाय. आ रीते बुद्धिना वीजा उपायोमां पण अर्थावग्रहादि विचारी लेवा. परंतु व्यंजनाग्रह थतो नथी, कारण के व्यंजनावग्रहने इन्द्रियाश्रितपणुं छे. बुद्धिओ( औत्पत्तिकी वगेरे )ने तो मननो संबंध होवाथी बुद्धिोधी भिन्नमां-श्रोत्रादिथी थयेलमा व्यंजनावग्रह मानवा योग्य छे (२०), 'सुयनाणे' इत्यादि प्रवचनरूप पुरुषना
१ आ हकीकत भाष्यनो गाथा ३०० मां कहेली छे. शिष्ये शंका करेल छे के-औत्पत्तिकी वगेरे बुद्धिचतुष्कमां अवग्रहादि | केवी रीते संभवे ? ए संबंधमां नटपुत्र भरतर्नु दृष्टांत आपवामां आवेलुं छे.
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