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थयेली) अने वैदारिणी (चीरवाथी थयेली) क्रिया २८, आ बन्ने क्रियाना बब्बे भेद नैसृष्टिकी क्रियानी माफक जाणवा २९-३०, बे क्रिया कहेली छे, ते आ-अनाभोग प्रत्ययिकी (अनुप्रयोगथी थयेली) अने अनवकांक्षाप्रत्ययिकी (बेदरकारीथी थयेली) ३१, अनाभोगप्रत्ययिकी क्रिया के प्रकारे छे, ते आ-अनुपयुक्त(थी) आदानता ( ग्रहण करवापj) अने अनुपयुक्त(थी) प्रमार्जनता ३२, अनवकांक्षाप्रत्ययिकी क्रिया बे प्रकारे छे, ते आ-आत्म(स्व)शरीरअनवकांक्षाप्रत्ययिकी अने परशरीरअनवकांक्षाप्रत्ययिकी ३३, बे क्रिया कहेली छे, ते आ-प्रेमप्रत्ययिकी अने द्वेषप्रत्ययिकी ३४, प्रेमप्रत्ययिकी क्रिया चे प्रकारे कहेली छे, ते आ-मायाप्रत्ययिकी अने लोभप्रत्ययिकी ३५, द्वेषप्रत्ययिकी क्रिया चे प्रकार छ, ते आ-क्रोधप्रत्ययिकी अने मानप्रत्ययिकी ३६. ( सू० ६०).
टीकार्थः-'आगासे'त्यादि-आकाश-व्योम अने नोआकाश ते आकाशथी अन्य धर्मास्तिकायादि पांच द्रव्यो. धर्मास्तिकाय ते गतिमां मदद करवाना गुणवाळो अने तेथी जुदो अधर्मास्तिकाय ते स्थितिमां मदद करवाना गुणवाळो जाणवो. (सू०५८). विपक्ष सहित बंधादि तत्त्वना चार सूत्रो पूर्वनी माफक जाणी लेवा (सू० ५९). क्रिया थये छते बंधादि आत्माने होय छे, माटे हवे क्रियानुं निरूपण करे छे-'दो किरियेत्यादि ३६ सूत्रो. करवु ते क्रिया अथवा कराय छे ते क्रिया. ते क्रिया के प्रकारे जिनेश्वरोए प्ररूपेली छे. तेमां जीवनो जे व्यापार ते जीव क्रिया, तथा पुद्गलसमुदायरूप जे अर्जाव तेनुं जे कर्मपणाए परिणमन | थर्बु ते अजीव क्रिया छे. (१). अहिं 'चिय' शब्द अने 'चेव' शब्दनो पाठांतरमा प्राकृत शैलीथी द्वित्व थयेल छे. 'अपि च' इत्यादि शब्दनी माफक 'चैव' ए शब्द समुच्चय मात्रमा ज प्रतीत थाय छे. 'जीवकिरिये' त्यादि-तत्वश्रद्धानरूप जे
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