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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र
सानुवाद ॥ ७० ॥
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कारणपणाए जे क्रियामां ते पृष्टिका, अथवा स्पृष्टि-स्पर्श करवाथी जे थयेली क्रिया ते स्पृष्टिजा तेवी ज रीते स्पृष्टिका पण जाणवी (१९). दृष्टिका बे प्रकारे 'जीवदिट्टिया चेव'त्ति-अश्व वगरे जोवा माटे जनारनी जे क्रिया ते जीवदृष्टिका, अथवा 'अजीवदिट्टिया चेव'त्ति-अजीव चित्रकर्म वगरेने जोवा माटे जनारनी जे क्रिया ते अजीवदृष्टिका (२०), 'पुट्टिया चेव' तिएबी रीते पृष्टिका जीव अने अजीवना भेदवडे वे प्रकारे छे, ते आ प्रमाणे- जीवने अथवा अजीवने राग-द्वेषबडे पूछनारनी अथवा स्पर्श करनारनी जे क्रिया ते जीवपृष्टिका अथवा जीवस्पृष्टिका तथा अजीव पृष्टिका अथवा अजीवस्पृष्टिका. (२१). बळी बीजी रीते वे क्रिया छे'पाडुचिया चेव' त्ति बाह्य वस्तु प्रत्ये प्रतीत करीने आश्रय करीने जे थयेली क्रिया ते प्रातीत्यिकी, तथा 'सामंतोव णिवाइया चेव'ति-समंतात् (चौतरफथी) उपनिपात (मनुष्यनो समुदाय) तेमां थयेली जे क्रिया ते सामंतोपनिपातिकी (२२). प्रातीत्यिकी व प्रकारे 'जीवपाडुच्चिया चेव' त्ति जीवने आश्रयीने जे कर्मबंध ते जीवपातित्यिकी, तथा 'अजीवपाडुच्चिया चेव' त्ति- अजीवने आश्रयीने रागद्वेष उत्पन्न थयेल अने तेनाथी थयेल जे कर्मबंध ते अजीवप्रातित्यिकी क्रिया. (२३). अतिदेशथी बीजी पण चे प्रकारे देखाडता थकां कहे छे - 'एवं सामंतोवणिवाइयावि'न्ति-कोई पण मनुष्यनो बळद रूपाळो छे, तेने मनुष्य जेम जेम विशेष जुवे छे अने प्रशंसा करे छेमतेम तेनो मालीक आनंद पामे छे, ते (राग)धी थयेली क्रिया ते जीवसामंतोपनिपातिकी, तथा रथ वगेरेने त्रिषे (स्थादिने जोनार प्रशंसे तेथी) हर्ष थवाथी थयेली जे क्रिया ते अजीवसामंतोपनिपातिकी क्रिया. (२४) वळी बीजी रीते वे क्रिया कहे छे- 'साहथिया चेव'ति, - पोताना हाथवडे थयेली जे क्रिया ते स्वहस्तिकी, तथा 'नेसस्थिया चेव त्ति-फेंक, तमां थयेली जे किया ते अथवा फेंक ज ते नैसृष्टिकी अर्थात् फेंकनारनो जे कर्मबंध अथवा स्वभाव ज क्रिया. ( २५ ) तेमां पहेली वे प्रकारे
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२ स्थानका
ध्ययने
क्रियाणां
द्वैविध्यम्
५८-६० सूत्राणि