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आयसरीरअणवकखवत्तिया चेव परसरीरअणवकंखवत्तिया चेव ३३, दो किरियाओ पं० तं०पिज्जवत्तिया चेत्र दोसवत्तिया चेव ३४, पेज्जवत्तिया किरिया दुविहा पं० तं० - मायावतिया लोभवत्तिया चैत्र ३५, दोसवत्तिया किरिया दुविहा पं० तं०- कोहे चेव माणे चेव ३६ । सू० ६०
मूलार्थः – आकाश अने नोआकाश एटले धर्मास्तिकायादि पांच बे वस्तु छे, धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकाय बे वस्तु छे. ( सू० ५८ ) बंध अने मोक्ष वे छे १, पुन्य अने पाप वे छे २, आश्रम अने संवर वे छे ३, वेदना ( पीडा ) अने निर्जरा वे छे ४. ( सू० ५९ ). वे क्रिया कहेली छे, ते आ प्रमाणे जीव क्रिया अने अजीव क्रिया १, जीव क्रिया चे प्रकारेकहेली छे, ते आ प्रमाणे – सम्यक्त्वक्रिया अने मिथ्यात्वक्रिया २, अजीवक्रिया चे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणेइर्यापथिकी अने सांपरायिकी ३, वे क्रिया कहेली छे, ते आ प्रमाणे कायिकी अने अधिकरणकी ४, कायिकी क्रिया बे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे - अनुपरत (विराम नहि पामेल ) कायक्रिया अने दुष्प्रयुक्त (दुष्ट रीते प्रवर्त्ताविल) कायकिया ५, अधिकरणकी क्रिया वे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे- संयोजनाधिकरणकी (शस्त्रादिनी योजना तैयारी करवारूप ) अने निर्वर्त्तनाधिकरणकी ( तैयार करी राखेल) ६, वे क्रिया कहेली छे, ते आ प्रमाणे - प्राद्वेषिकी (विशेष द्वेषरूप) किया अने पारितापनिकी (संताप करवारूप) क्रिया ७, प्राद्वेषिकी क्रिया चे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे जीवप्राद्वेषिकी अने अजीव द्वेषिकी ८, पारितापनिकी क्रिया वे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे- स्वहस्तपारितापनिकी क्रिया अने परहस्तपारितापनिकी क्रिया ९,
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