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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आयसरीरअणवकखवत्तिया चेव परसरीरअणवकंखवत्तिया चेव ३३, दो किरियाओ पं० तं०पिज्जवत्तिया चेत्र दोसवत्तिया चेव ३४, पेज्जवत्तिया किरिया दुविहा पं० तं० - मायावतिया लोभवत्तिया चैत्र ३५, दोसवत्तिया किरिया दुविहा पं० तं०- कोहे चेव माणे चेव ३६ । सू० ६० मूलार्थः – आकाश अने नोआकाश एटले धर्मास्तिकायादि पांच बे वस्तु छे, धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकाय बे वस्तु छे. ( सू० ५८ ) बंध अने मोक्ष वे छे १, पुन्य अने पाप वे छे २, आश्रम अने संवर वे छे ३, वेदना ( पीडा ) अने निर्जरा वे छे ४. ( सू० ५९ ). वे क्रिया कहेली छे, ते आ प्रमाणे जीव क्रिया अने अजीव क्रिया १, जीव क्रिया चे प्रकारेकहेली छे, ते आ प्रमाणे – सम्यक्त्वक्रिया अने मिथ्यात्वक्रिया २, अजीवक्रिया चे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणेइर्यापथिकी अने सांपरायिकी ३, वे क्रिया कहेली छे, ते आ प्रमाणे कायिकी अने अधिकरणकी ४, कायिकी क्रिया बे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे - अनुपरत (विराम नहि पामेल ) कायक्रिया अने दुष्प्रयुक्त (दुष्ट रीते प्रवर्त्ताविल) कायकिया ५, अधिकरणकी क्रिया वे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे- संयोजनाधिकरणकी (शस्त्रादिनी योजना तैयारी करवारूप ) अने निर्वर्त्तनाधिकरणकी ( तैयार करी राखेल) ६, वे क्रिया कहेली छे, ते आ प्रमाणे - प्राद्वेषिकी (विशेष द्वेषरूप) किया अने पारितापनिकी (संताप करवारूप) क्रिया ७, प्राद्वेषिकी क्रिया चे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे जीवप्राद्वेषिकी अने अजीव द्वेषिकी ८, पारितापनिकी क्रिया वे प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे- स्वहस्तपारितापनिकी क्रिया अने परहस्तपारितापनिकी क्रिया ९, १२ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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