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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र
सानुवाद
॥ २७ ॥
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अनादि बंधनो सद्भाव छते पण कोइक भव्यात्मानो मोक्ष थाय छे, माटे हवे मोक्षनुं स्वरूप कहे छे:-' एगे मोक्खे मूका - कर्मपाशथी छूट ते आत्मानो मोक्ष. वाचकवर्य उमास्वाति कहे छे के " कृत्स्नकर्मक्षयान्मोक्षः । " सर्व कर्मनो क्षय थवा मोक्ष थाय छे. ते मोक्ष एक छे. ज्ञानावरणीयादि कर्मनी अपेक्षाए आठ प्रकारे छे तो पण मुकाववाना समानपणाथी, अथवा मुक्त (आत्मा)नो फरी मोक्षनो अभाव होवाथी, अथवा इपत्प्राग्भारा नामे पृथ्वीरूप क्षेत्रलक्षण ते द्रव्यार्थपणाए एक छे. अथवा द्रव्यथी मोक्ष- बेडी वगेरेथी छूटवु, भावथी मोक्ष - कर्मथी छूट ते बन्नेमां छूटवानुं समानपणुं होवाथी मोक्ष एक छे. शंकाजीव अने कर्मनो संयोग अंतरहित छे, कारण के जीव ने आकाशना संयोगनी जेम अनादि छे तो कर्मना वियोगरूप मोक्ष होवाथी जीवने मोक्ष केम संभवे ? समाधान-अनादित्व हेतु अनैकान्तिक छे. धातु ( सुवर्ण सिवाय ) अने कांचननो संयोग अनादि छे, ते पण क्रिया (तापादि) विशेषथी अंत सहित देखाय छे अर्थात् तेनो वियोग थाय छे. ए प्रमाणे आ जीव अने कर्मनो संयोग पण (अनादि छतां ) सम्यग् दर्शन, ज्ञान अने चारित्रवडे अंत सहित थशे. जीव अने कर्मनो वियोग ते मोक्ष कहेवाय छे. शंका-नारक वगेरे पर्यायस्वरूप संसार छे, बीजो संसार नथी, ते नारकादि पर्यायोथी जुदो कोई जीव ज नथी, नारका दि पर्यायो ज जीव छे; कारण के तेनो एक ज अर्थ होवाथी संसारनो अभाव छते नारकादि पर्यायस्वरूपनी जेम जीवनो अभाव छे. अर्थात नरकादि पर्यायस्वरूप संसारनो अभाव छते जीवनो अभाव छे माटे मोक्ष असत् पदार्थ छे. भाष्यकार कहे छे:जं नारगादिभावो, संसारो नारगाइभिन्नो य । को जीवो तं मन्नसि ?, तन्नासे जीवनासोत्ति ॥ ६२' ॥
१. आ गाथा भाष्यमा १९७८ मी छे, प्रभास गणधरने उद्देशीने कहेवायेल हे.
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१. स्थाना
ध्ययने मोक्षस्वरूपम् १० सूत्रम्.
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