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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥४०॥
समयादिरूप छे. आ कारणथी समयनुं निरूपण करे छ:
एगे समए । सू० ४४, एग पएसे एगे परमाणू । सू० ४५,
एगा सिद्धी, एगे सिद्धे, एगे परिनिव्वाणे, एगे परिनिव्वुए । सू० ४६ मूलार्थः-समय एक छे. प्रदेश एक छे. परमाणु एक छे. सिद्धशिला एक छ. सिद्ध एक छ. सकल कर्मना नाशथी स्वस्थरूप-परिनिर्वाण एक छे, सर्वथा शारीरिक अने मानसिक दुःख रहित परिनिवृत एक छ.
टीकार्थ:-'एगे समए समय-परम निकृष्ट काल-अत्यंत सूक्ष्म-जेना बे विभाग न थाय ते, सेंकडो कमलपत्रना भेदनना दृष्टांतथी अथवा जीरण वस्त्रनी साडीना फाडवाना दृष्टांतथी आगममा प्रसिद्ध होवाथी जाणवू. ते वतमानस्वरूप समय भूतकालनो नाश अने भविष्यकालनी उत्पत्तिनो अभाव होवाथी एक ज छे. अथवा स्वरूपवडे अंश रहित होवाथी समय एक छे. (सू०४४) अंश रहित वस्तुना अधिकारथी ज आ बन्ने सूत्र कहे छ:-' एगे पएसे एगे परमाणू' प्रकृष्ट-अंश रहित, धर्म, अधर्म, आकाश अने जीवोना देश-अवयवरूप प्रदेश एक छे; कारण के स्वरूपथी बीजा वीजा प्रदेश वगेरेमा देशना कथनवडे प्रदेशपणाना अभावनो प्रसंग थशे. 'परमाणु'त्ति परम-अत्यंत, अणु-मूक्ष्म ते परमाणु, इयणुकादि स्कंधाना कारणभूत छ. कहेलुं छे के-“छल्लामा छेल्लु कारण सूक्ष्म अने नित्य परमाणु होय छे. एक वर्ण, एक रस, एक गंध अने (अविरोधी) वे स्पर्शवाळो छ तेमज कार्यथी जणाय छे ते परमाणु" ते स्वरूपथी एक ज छे एम जो न मानीए तो आ परमाणु एQ
१.स्थाना
ध्ययने सिद्धिाकाग्रमिति
साधनं ४४-४६ सूत्राणि
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