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द्वित्यवतार छे, स्वरूपवान् भने प्रतिपक्षवान् इत्यर्थ ' तद्यथे ' ति दृष्टांतना स्थापनमां ' तद्यथा' शब्द छे. 'जीवचेव अजीवचेव 'त्ति-' जीवाश्चैवाजीवाश्चैव, प्राकृतशैलीथी संयुक्त परत्ववडे ह्रस्व थाय. ये चकार समुच्चय अर्थवाळा छे अने ' एव ' कार चोकस अर्थमां छे. 'एव' नो चोकस अर्थ करवावडे राश्यंतर ( त्रीजी राशि ) नो निषेध कहेल छे. | नोजीव नामनी राशि जुदी राशि छे, एम जो कहेशो तो तेम नथी, कारण के 'नो' शब्दनो सर्व निषेधकपणामां स्वीकार करवाथी 'नोजीव ' शब्दवडे अजीव ज चोकस थाय छे अने नो शब्दने देश निषेधक अर्थमां लेवाथी तो जीवनो देश ज चोक्कस थाय छे. देश ( अवयव ) अने देशी ( अवयवी ) नो अत्यंत भेद नथी, माटे आ देश ते जीव ज छे. अथवा 'चेय'ति चय शब्द एवकारना अर्थवाळो छे. ' चिय चेय एवार्थ ' इति वचनात् तथा जीवो ज विवक्षित वस्तु छे अने अजीवो ज प्रतिपक्ष वस्तु छे, एवी रीते सर्वत्र जाणवुं. अथवा ' यदस्ति ' सत्रूप जे वस्तु, जीव अने अजीवना भेदथी वे प्रकारे होय छे. शेष तेमज जाण. हवे त्रस इत्यादि नव सूत्रना समूहवडे जीवतचना ज प्रतिपक्ष सहित भेदोने बताये छे:- तसे चेवेत्यादि, मां त्रसनामकर्मना उदयथी त्राम उद्वेग पामे छे ते द्वींद्रिय वगेरे त्रसजीवो, अने स्थावरनामकर्मना उदयथी गति रहितस्थिर स्वभाववाळा पृथिवीकायिक वगेरे स्थावर जीवो छे. (१). उत्पत्तिस्थान सहित ते सयोनिको संसारी जीवो अने तेनाथी विपरीत अयोनिको सिद्धो छे. (२). जे आयुष्य सहित वर्त छे ते सायुष्क- आयुष्यवाळा संसारी जीवो अने तेनाथी अन्य - आयुष्य
१. वे चकारना संयोगथी प्राकृतनियम प्रमाणे वकार हूस्व थयेल छे..
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