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कहेवायो हवे कइंक प्रत्यवस्थान ( समाधान ) ना प्रस्तावमां नयद्वार कहेलुं छे तो पण अनुयोगद्वारना क्रमवडे आवेलुं नयद्वार फरीथी विशेष स्वरूपे कहेवाय छे. तेमां नैगम वगेरे सात नयो छे अने ते ज्ञाननय अने क्रियानयमां अंतर्भाव थाय छे. ते ज्ञान अने क्रियानयथी आ अध्ययननो विचार कराय छे. तेमां ज्ञानक्रियात्मक आ अध्ययनमां, ज्ञाननय ज्ञानने ज मुख्य (श्रेष्ठ) इच्छे छे, कारण के समस्त पुरुषार्थनी सिद्धि ज्ञानना आधीनपणाथी थाय छे. कधुं छे केविज्ञप्ति - विशेष ज्ञान पुरुषोने फल देनार छे, पण क्रिया फळनी देनारी इष्ट नथी, कारण के मिथ्याज्ञानथी प्रवृत्त थयेल पुरुषने फलनी प्राप्तिनो असंभव छे. आ कारणथी आ लोक अने परलोकना फळने इच्छनारे ज्ञानमां ज प्रयत्न करवो जोईए. क्रियानय तो क्रियाने ज इच्छे छे; कारण के पुरुषार्थनी सिद्धिमां क्रियानुं ज प्रयोजनपणुं छे. वळी कं छे के-" क्रिया ज पुरुषोने फल देनारी छे, पण ज्ञान फलने देनारुं इष्ट नथी, तेथी स्त्री अने भक्ष्यना भोगने जाणनार ज्ञानमात्रथी सुखी थतो नथी. " आ कारणथी ऐहिक अने पारलौकिक फलना इच्छकोए क्रिया ज करवा योग्य छे. जैनदर्शनमां तो ज्ञान अने क्रिया बने पैकी कोड़ एकने पुरुषार्थतुं साधनपणुं कां नथी. जेथी कहुँ छे केः
हयं नाणं कियाहीणं, हया अन्नाणओ किया । पासंतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो य अंधओ ॥११८॥
क्रिया वगरनुं ज्ञान हणायेलुं ( फल रहित ) छे अने अज्ञानथी करायेली क्रिया निष्फल छे. देखतां थको पांगळो माणस अने दोडतो थको आंधळो माणस बन्ने बळी जाय छे, अर्थात् ज्ञान पांगळु छे अने क्रिया आंधळी छे, ज्ञान अने क्रियानो संयोग ज फलनो साधक छे. कहां छे के
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