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कह्या छे, एवी रीते एक समयनी स्थितिवाळा अने एकगुण काळा वर्णवाळा पुद्गलो अनंत कहेल छे, यावत् एकगुण रुक्षस्पर्शवाळा पुद्गलो अनंत कहेल छे. (सू० ५६)
टीकार्थः-जंबूवृक्ष विशेषवडे ओळखातो जे द्वीप ते जंबूद्वीप नामनो द्वीप ए सामान्य नान छे. यावत् शब्दना ग्रहणथी आ प्रमाणे सूत्र जोQ-जाणवू. सर्वाभ्यंतर, सर्व द्वीपादिथी लघु, वृत्त (गोळ) तेलना पूडलाना आकारवाळो, एक लाख योजन लांबो-पहोळो, त्रिगुण झाझेरी परिधिवाळो, उक्त विशेषणवाळो जंबूद्वीप एक ज छे. पूर्वोक्त विशेषण रहित बीजा अनेक जंबूद्वीपो पण छे (मू० ५२). हमणां जे जंबूद्वीप कह्यो तेना प्ररूपक भगवान महावीरनुं एकपणुं कहे छ:-'एगे समणे' इत्यादिएक-असहाय, आनो संबंध सिद्ध वगेरे शब्द साथे छे. श्राम्यति-जे तपश्चर्या करे छे ते श्रमण, भज्यत इति भगः-समग्रं ऐश्वर्यादि स्वरूप. कडुं छे-समग्र ऐश्वर्य, रूप, यश, लक्ष्मी, धर्म अने प्रयत्न-आ छ अर्थमां ' भग' शब्द वपराय छे. आ
छ अर्थ छे विद्यमान जेने ते भगवान्. वळी ईरयति-विशेषवडे मोक्ष प्राप्त करे छे अने प्राणीने प्राप्त करावे छे, अथवा प्राणी| ओने प्रेरणा करे छ अथवा कर्मोने दूर करे छे अथवा वीरयति-रागादि शत्रुओने जीते अने बीजाओने जीतावे छे, अथवा | निरुक्तिथी वीर शब्द छे. कडुं छे के-“जे कर्मने विदारे छे-नाश करे छे अने तपवडे शोभे छ, तप अने वीर्यवडे युक्त छे ते कारणथी वीर कहेवाय छे. " अन्य वीरनी अपेक्षाए महान् एवो जे वीर ते महावीर. भाष्यमां कहेलुं छे केतिहयणविक्खायजसो, महाजसो नामओ महावीरो। विकतोय कसाया-इसत्तसेन्नप्पराजयओ ॥११३॥
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