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Acharya Shri Kalassagarsuri Gyarmandie
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१ पात्र, २ पात्रबंध (झोली), ३ पावस्थापन-जेमा पात्र स्थापन करवामां आवे छे ते कंबलनी खंड, ४ पात्रकेसरिकाकोमळ वस्खनो खंड, ५पडला-भिक्षाए जतां पात्रना उपर जे ढांकवामां आवे छ ते, ६ रजत्राण-पात्रनी वच्चे जे वस्त्र मूकवामा आवे छे ते, ७ गोच्छक-कंबलनो टुकडो जे पात्रना उपर बांधवामां छे ते (ए सात प्रकारनो पात्र संबंधी उपधि छे),८-१० त्रण प्रच्छादको (वस्त्रो)-चे सूतरनो अने एक ऊननो, ११ रजोहरण अने १२ मुहपत्ति-आ बार उपधि होय छे. प्रत्येकबुद्धोने त्रण वस्त्र सिवाय नव उपधि होय छे. स्वयंबुद्धोनो पूर्व(भव मां भणेला श्रुत विषे नियम नथी, अर्थात् पूर्वभेवर्नु अध्ययन
करेलु श्रुत होय अथवा न पण होय. प्रत्येकबुद्धोने तो पूर्व जन्मनुं अध्ययन कहेलं श्रुतं चौकस होय छे. स्वयंबुद्धाने लिंग*(मुनिवेष )नो स्वीकार आचार्योनी समीपमा पण होय छे ज्यारे प्रत्येकबुद्धोने तो देव आपे छे. बुद्धबोधितो-आचार्यादिवडे प्रति
बोध पामेला छतां जे सिद्रो थाय ते बुद्धबोधितसिद्धो. तेओनी वर्गणा एक छे (७). उपरना तेम ज स्त्रीलिंगसिद्धो (८), पुरुषलिंगसिद्धो (९), नपुंसकलिंगसिद्धो (१०), रजोहरणादिनी अपेक्षाए स्वलिंगसिद्धो (११), परिव्राजकादि लिंगमां सिद्ध थयेला ते अन्यलिंगसिद्धो (१२), मरुदेवी वगेरे गृहिलिंगसिद्धो (१३), एक समयमां अकेक सिद्ध थयेला ते एकसिद्धो (१४) अने एक समयमां बेथी एक सो आठ सुधी जे सिद्ध थयेला ते अनेकसिद्धो (१५). आ स्त्रीलिंगसिद्धो वगेरेनी एकेक वर्गणा छ, अनेक समय सिद्धोनी निरूपण करनारी गाथा नीचे प्रमाणे छ--
१. वर्तमान भवमा नवीन अव्ययन करेलु श्रुत होय न छे. २. जघन्यथी अभ्यार अंग अने उत्कृष्टयो कंक न्यून दश पूर्व जेटलु श्रुत होय छे.
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