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श्रीस्था
नाङ्गसूत्र
सानुवाद ॥ ५८ ॥
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पाद ( पारा ) ना एक कवडे चारिता-खवायेला (मिश्रण थयेला) सुवर्णना सात कर्षो ते एक केपीभूत थाय छे अने फरी प्रयोगवडे अलग करवाथी सात ज कर्ष सुवर्ण थाय छे. 'जाव एगा असंखेज्जपएसोगाढाणमिति पुद्गलोनुं अनंत प्रदेशावगाहीपणुं ज नथी, कारण के लोकप्रमाणरूप अवगाह क्षेत्रनुं पण असंख्येय प्रदेशपशुं छे. हवे कालथी कहे छे'एगा एगसमए' त्यादि - परमाणुत्वादिवडे एकप्रदेशावगाढादित्ववडे अने एकगुण काळादित्ववडे एक समय सुधी ज रहेवानुं छे जेओने ते एकसमयस्थितिवाळा कहेवाय छे. तेओनी वर्गणा एक छे. प्रस्तुत प्रसंगमां पुद्गलो नो अनंत समयनी स्थितिनो अभाव होवाथी असंखेज समय द्वितीयाणमित्युक्तं अर्थात् असंख्यात समयनी स्थिति कही छे. हवे भावथी वर्णवे छे-'एगा एगगुणे'त्यादि - एकथी गणवं (ताडन करं) छे जेओने ते एकगुण. एकगुण काला वर्ण छे जेओने ते एकगुण काळा. जेओथी एकगुण आरंभीने तरतमताथी कृष्णतर, कृष्णतम वगेरे भावोनी पहेलां उत्कर्षनी (द्विगुणकालक वगेरेनी) प्रवृत्ति थाय छे. तेओनी वर्गणा एक छे. एवी रीते सर्वे भावसूत्रो बसो साठ प्रमाणवाला कहेवा. कृष्णवर्णादि वीश भावोने तेरेबडे गुणवाथी ते थाय छे. हवे प्रकारांतरवडे जघन्यादि भेदथी भिन्न द्रव्यादि विशिष्ट स्कंधोनी वर्गणानुं एकपणुं कहे छे:'एगा जहन्नपएसियाणमि 'त्यादि सर्वथी थोडा प्रदेशो- परमाणुओ छे जेओने ते जघन्य प्रदेशिको, द्विप्रदेश वगेरे
१. एक कर्ष वजन न होया छतां पण एक कर्ष धाय छे. कर्ष ते हालमां एक रुपियाभार- तोलो कहेवाय छे. २. एकधी मांडी दश संख्या पर्यंत दश अने संख्यात, असंख्यात तथा अनंत एम १३ सूत्र जाणवा. ३. पोतपोतानी वर्गणामां जघन्य वीणाओनुं अनेकप होवाथी द्विअणुकादिको कहेल छे, परंतु त्रिप्रदेशिक मध्यम कहेवाय छे.
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१ स्थाना ध्ययने सिद्धभेदाः १५
५१ सूत्रम
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