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मूलार्थ:-एक अवसर्पिणी, एक सुसमसुसमा यावत् एक दुसमदुसमा छे. एक उत्सर्पिणी, एक दुसमदुरामा यावत् सुसमसुसमा एक छे.
टीकार्थः-काल ए केम जणाय छे? एम जो कहेशो तो कहीए छीए के वकुल, चंपक अने अशोकादि वृक्षोमा पुष्पोना प्रदानआववाना नियमवडे देखावाथी. तेनो नियामक कारण काल छे. तेमा 'ओसप्पिणीति घटता आराबडे जे घटे छ, अथवा आयुष्य अने शरीरादि भावोने घटाडे-ढूंका करे छे ते अवसर्पिणी, दश कोडाकोडी सागरोपम प्रमाणरूप कालविशेष छे. सारामां सारं अत्यंत सुखरूप ते मुपमसुषमा नामे अवसर्पिणीनो ज पहेलो आरो, अवसर्पिणीना हानिना स्वरूपवडे एकत्व होवाथी एकपणुं छे, एम सर्वत्र जाणवू. यावत् शब्द मर्यादा देखाडवा माटे छे, तेथी सुषममुषमा इत्यादि सूत्रो स्थानांतरमां प्रसिद्ध जे छ त्यांसुधी कहे. यावत्' दुसमदुसमे' ति आ पद पर्यंत पाठनो संग्रह करवो. अहिं आ अतिदेश, सूत्रनालाघव(संक्षप) माटे छे. एवी रीते सर्व स्थले ' यावत् शब्दनी व्याख्या करवा योग्य छ, अतिदेशवडे प्राप्त थयेला अने 'एक' शब्दवडे समीपमा आवेला पदो आ छ-'एगा सुसमा, एगा सुसमदुसमा, एगा दुसमसुसमा, पगा दुसमे ति आ आराओनुं स्वरूप शब्दना अनुसारथी जाणवु. प्रथमना त्रण आरानुं क्रमशः चार, त्रण अने ये कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण जाणवू. चोथा आरानुं बेंतालीश हजार वर्ष न्यून एक कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण छे. छेल्ला बे आरामा प्रत्येकनुं एकवीश हजार वर्ष प्रमाण छे. बळी आरानी अपेक्षाए जे वृध्धि पामे छे ते, अथवा आयुष्य वगेरे भावोनी जे वृध्धि करावे छे ते उत्स
१. साक्षात् पाठ न होय छतां कहेवा योग्य पाठ लाववो ते अतिदे रा.
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