________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रीस्था
नामसूत्र
सानुवाद ॥ ५२ ॥
www.kobatirth.org
रोपमस्थितिविशिष्ट वेदवा योग्य मिथ्यात्वमोहनीय कर्मनी स्थितिमांथी, उदयकालना क्षणथी आरंभीने अंतर्मुहूर्त सुधी ( भोगवा योग्य स्थितिने) ओलंघीने अपूर्वकरण अने अनिवृत्तिकरणनी संज्ञावाळा विशुद्ध विशेषोवडे अंतर्मुहूर्त्त काळप्रमाण ' अंतरकरण' करे छे, ने ते अंतरकरण कर्ये छते मिथ्यात्वमोहनीय कर्मनी वे स्थिति थाय छे. अंतरकरणनी नीचेनी अंतर्मुहूर्त्तमात्र स्थिति ते प्रथम स्थिति अने ते अंतरकरणथी ज उपरली बांकीनी जे स्थिति ते बीजी स्थिति. त्यां प्रथम स्थितिमां मिथ्यात्वना दलिकोना वेदन- भोगवाथी आ जीव मिथ्यादृष्टि होय छे. ते जीव अंतर्मुहूर्त्तवडे तो ते प्रथम स्थितिनो नाश थये छते मिथ्यात्व दलिकोना वेदननो अभाव होवाथी अंतरकरणना प्रथम समयमां ज औपशमिक सम्यक्त्वने पामे छे. जेम दावानळ, पूर्व बाळेल लाकडावाळा स्थळने अथवा खारी जमीनने प्राप्त थहने ठरी जाय छे-नष्ट थाय छे तेम मिध्यात्वमोहनीय कर्मना वेदनरूप अग्नि, अंतरकरणने प्राप्त थइने टरी जाय छे. औषध विशेष समान ते औपशमिक सम्यक्त्वने प्राप्त करीने मदनकोद्रव समान दर्शनमोहनीयरूप अशुद्ध कर्म त्रण प्रकारे थाय छे-१ अशुद्ध, २ अर्धविशुद्ध अने ३ विशुद्ध. ते त्रण पुंजो( ढगला )ना मध्ये ज्यारे अर्धविशुद्ध पुंज उदय थाय छे त्यारे तेना उदयवशथी जीवने अर्धविशुद्धरूप अरिहंतोए कहेलुं-जो
१. अंतर्मुहूर्त न्यून अंत: कोडाकोडी सागरोपम काल प्रमाणालो. २. प्रथम स्थिति पूर्ण थया पछी शीव अतंरकरणमा प्रवेश करे छे. ३ अंतरकरणनो काल पूर्ण थये छते औपशमिक सम्यक्त्वनो काल पण पूर्ण थाय छे. पछी अवश्य ते जीव त्रण पुंनमाथी कोइपण एक पुत्रमां जाय छे, जेथी जे पुंजनो उदय थाय तेवी दृष्टिवाळो थाय छे.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only
EXEXEVERE
१ स्थानाध्ययने दृष्टिखरूपम् ५१ सूत्रम्
॥ ५२ ॥