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नाम ज नहि होय. अथवा समय, प्रदेश अने परमाणु अनंत छतां पण तुल्यरूपनी अपेक्षाए तेओर्नु एकपणुं छे. (सृ०४५) जेम तथाविध एकत्य परिणामविशेपथी परमाणुर्नु एकपणुं थाय छे, तेम ते कारणथी ज अनंत परमाणुमय स्कंधर्नु एकपणुं थाय एम देखाडता थका सब बादर स्कंधमां श्रेष्ठरूप इपत्प्रागभार नामविशिष्ट पृथिवीस्कंधनी प्ररूपणा कर छ:-'एगा सिद्धी' सिध्यन्ति-जेने विपे ( जीवो) कृतार्थ थाय छे ते सिद्धि. जो के ते लोकना अग्रभागे छे, तेथी कहलुं छे के-'इहं बुदि चइत्ताणं, तत्य गंतृण सिज्झइ" ति अहिं-मृत्युलोकमां शरीरने छोडीने लोकना अंतमा जईने सिद्ध थाय छे, तो पण लोकांतना समीपपणाथी इपत्प्रागभारा पृथ्वी पण 'सिद्धि' नामवडे कथन कराय छे. कहेलुं छे:-' बारसहिं जोयणेहिं, सिद्धी सबट्टसिद्धाउ' त्ति. सर्वाथसिद्ध विमानथकी बार योजन उपर सिद्धि छे. जो लोकाग्र मात्र ज सिद्धि होय तो तेना पछी जे कहेलं छ:-'निम्मलदगरयवण्णा, तुसारगोक्खीरहारसरिवन्ने स्वच्छ पाणीना रज (कणिया) जेवा वर्णवाळी, हिम, गायनुं दूध अने मोतीना हार तेना जेवी धोळी इत्यादि सिद्धिना स्वरूपर्नु वर्णन केम घटे ? कारण के लोकाग्र तो अमूर्त छे.
आ कारणथी अहिं इषत्प्रागभाराने सिद्धि कहेली छे. द्रव्यार्थपणे पीस्तालीश लाख योजनप्रमाण स्कंधर्नु एक परिणामपणुं होबाथी ते एक छे. पर्यायार्थपणे तो अनंत सिद्धि छे. अथवा कृतकृत्यत्व-कृतार्थपणुं अने लोकाग्र क्षेत्ररूप, अथवा अणिमा, महिमा बगेरे सिद्धि छे. सामान्यथी सिद्धिन एकपणुं छे. सिद्धिनुं वर्णन कर्या वाद सिद्धिनुं वर्णन करे छे-'एगे सिद्धे' सिध्यति स्म-कृतार्थ थया, सेधति स्म वा अथवा फरीन आववावडे जे लोकाग्रने प्राप्त थया ते सिद्ध. सितं वा-अथवा बंधायेल कर्म, ध्मातं बळेल छे जेना ते निरुक्तथी (खंड व्युत्पत्तिथी) सिध्ध-कर्मना प्रपंचथी मृकायेल एटले ते द्रव्यार्थपणाए
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