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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ।। २६ ॥
१. स्थाना
ध्ययने बंधस्वरूपम् ९सूत्रम्
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अने अनुभावना भेदथी चार प्रकारे छे तो पण बंधनुं समानपणु होवाथी एक बंध छ, अथवा मुक्त थयेलने फरी बंधनो अभाव होबाथी एक बंध छे. वळी द्रव्यथी बंध बेडी वगेरे, भावथी कर्मवडे बंध, ते द्रव्य अने भाव बंधमां बंधन- समानपणुं होबाथी एक बंध छे. शंका-जो तमने जीव-कमना संयोग ते बंध इच्छित छ तो ते अधिमान् के आदिरहित छ ? एम वे विकल्प थाय छे. तेमा जो आदिमान पक्ष स्वीकारशो तो शुं पहेलो आत्मा अने पछी कर्म ? अथवा पहेलां कर्म अने पछी
आत्मा ? अथवा कर्म अने आत्मा बन्ने साथे उत्पन्न थाय छे ? आ त्रण विकल्पं थाय छे. तेमां गधेडाना शींगडानी माफक हेतुनो अभाव होवाथी आत्मानी उत्पत्ति प्रथम संभवती नथी, कारण सिवाय उत्पन्न थयेल(वस्तु)नो अकारणथी ज नाश थाय. वली वादी कहे छे-अनादि ज आत्मा छे तो पण कारणनो अभाव होवाथी आकाशनी माफक आत्मानो कर्म साथे योग घटमान नहि थाय. जो कारण सिवाय पण कर्म साथे योग थाय तो मुक्त जीवने पण कर्मनो योग थवो जोइए. जो आ आत्मा नित्य मुक्त ज छे तो मोक्षनी जिज्ञासावडे शुं? अर्थात् मोक्षनी जिज्ञासा ज न होय अने बंधनो अभाव छते मुक्तना कथननो आकाशनी माफक अभाव ज थाय अर्थात् 'आ मुक्त छ' एम कही शंकाशे नहि.
प्रथम कर्म अने पछी आत्मा. आ बीजो विकल्प पण बरोबर नथी; कारण के कर्त्तानो अभाव होवाथी आत्माथी पूर्व कर्मनी उत्पत्ति न थाय. न करायेल कार्यने कर्म कहेवू ते पण इष्ट नथी. कारण विना उत्पत्तिनो अकारणथी ज नाश थाय छे. कर्म अने जीवनुं साथे उत्पन्न थर्बु ए बीजो पक्ष पण योग्य नथी. कारणना अभावथी समकाले बन्नेनी उत्पत्ति छते जमणा-डाबा गायना
१.संसारीनीवोनो अपेक्षाए. २ आ त्रण विकल्प आदिमान् पक्षमा न करेल छे. ३ अहिं प्रथम विकल्प वह्यो.
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॥ २६॥
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