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श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद
कराय छ अने शुभ स्थानमा ए जीवाने स्थिर करे छ तेथी धर्म कहवाय छे." ने धम, श्रुत अने चारित्रस्वरूप छे. तेना
।४१ स्थाना85 प्रतिपक्ष ते अधर्म छे. अधम विषयप्रतिज्ञा, अथवा अधममा मुख्य जे शरीर न अधमप्रतिज्ञा, ते एक छ, कारण के बधी ध्ययन
प्रतिज्ञा अत्यंत दुःखना कारणवडे एकरूप छे. आ कारणथी ज कहे छ:-जं से इत्यादि कारणी ने प्रतिज्ञानो स्वामी जीय, एकयोगता अथवा अधम प्रतिज्ञावाळो आत्मा रागादिवडे बाधा पामे छे, मंक्लेश पाम छे. अथवा 'सि'निआ पाठांतर छे, तेथी प्राकृतवडे लिंग(जाति )ना विपयासथी जे अधर्म प्रतिज्ञा छते आत्मा क्लेश पाम छ ने एक ज छ. (सू०३९) एनाथी विपरीत कहे छ-'एगे धम्मे' इत्यादि पूर्ववत् एटले धर्म शब्दनो व्युत्पत्त्यर्थ वगरेज कहल छे तेनी माफक जाणवू. नवरं-विशेष कहे छ-पयवो-ज्ञानादि विशेषो उत्पन्न थयेल छ जेन ते पर्यवजात थाय छ-विशुद्ध थाय छे. आहिताग्नि आदि गणथी 'जात' शब्दने उत्तरपदपणुं छ. अथवा पर्यवोने अथवा पयवोने विपे जे प्राप्त थयेल छे ते पर्यवयात, अगर तो विशिष्ट रक्षा वा विशिष्ट ज्ञान, तेने अथवा तेमां प्राप्त थयेल. (मू०४०) धर्म अने अधर्मप्रतिज्ञा त्रण योगथी थाय छे ते कारणथी योगर्नु स्वरूप कहे छ:-'एगे मणे' इत्यादि त्रण मूत्र. तेमा मन इनि मनायांग-जेज समयमा विचाराय छ ते ते समयमां कालविशेष मनयोग एक ज छे. वीप्साना निर्देशवडे कोई पण ममयमां बे विगेरे संख्या तेनी संभवती नथी. आ हेतुथी कहे छजीवाचें एक उपयोगपणुं होबाथी मननु एकपणुं छ. शंका- एक समयमां) एक ज उपयोगवाळो जीव नहिं थाय ? कारण ? एक समये तथाविध जुदा जुदा विषयना उपयोगवाला वे पुरुषनी माफक शीत अने उष्ण स्पर्श विषयनो अनुभव बन्ने १. निठा मूत्रथो । जातपर्या' प्रयोग उचित छे, पण तेनो बाध करीने आहितानि आदि गणथी । पर्यवजात' थयेल छे.
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