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पण, अथवा दरक जीवो विचित्र ( भिन्नभिन्न ) होवाथी अनंत भेद छतां पण पुण्यनुं समानपणुं होबाथी एक पुण्य छे. शंकाससलाना शींगडानी माफक प्रत्यक्षादि प्रमाणनो विषय न होवाथी कर्म ज विद्यमान नथी, जो कम ज नथी तो पुण्यकर्मनी सत्ता क्याथी होय ? समाधान-आ कहेवू असत्य छ; कारण के कर्म अनुमानथी सिद्ध छे. ते आ प्रमाणे-कर्म सुख-दुःखना अनुभवनो हेतु छे. कार्य होवाथी जेम बीज अंकुरनो हेतु छ तेम अहिं जाणवू. जे अनुभवनो हेतु छे ते कर्म. ते कारणथी कम छे. कदाच आवी तमारी मति (शंका ) थाय के-सुख-दुःखना अनुभव तो इष्ट अने अनिष्ट विषयनी प्राप्तिमय दृष्ट ज (देखातो )हेतु थशे, पण अहिं अदृष्ट कर्मनी कल्पना शा माटे करवी? कारण के प्रत्यक्ष देखाता निमित्तने छोडीने अन्य निमित्तनुं अन्वेषण करवू ते योग्य नथी. समाधान-ए तमारु कथन युक्तिवाळु नथी, कारण के हेतु व्यभिचारी छे. अहिं इष्ट शब्दादि विषयसुखना साधन सहित ये मनुष्योने साधनना फलमां तफावत जोवाय छ अर्थात् एकने दुःखनो अनुभव थाय छ अने बीजाने सुखनो अनुभव थाय छे. तेमज अनिष्ट साधनसंपन्न बन्ने मनुष्योने फलमां भेद जोपाय छे, एकने सुखनो अनुभव थाय छे अने बीजाने दुःखनो अनुभव थाय छे. आ विशेष ( भेद ) हेतु विना संभवी शकशे नहिं. सुख दुःखना अनुभवना हेतुरूप जे दृष्ट हेतु ते साधनोनो विपर्यास होवाथी योग्य नथी. अविशिष्टथी सुख-दुःखनो अनुभव, कार्यपणुं होवाथी घडानी माफक विशिष्ट हेतुवाको छे. समान साधनसंपन्न बने व्यक्तिमा जे तेना फलविशेषमां हेतु ते कर्म, ते कारणथी कम छे. भाष्यकार कहे छ के
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