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तेम. तथा स्थितिपरिणामने पामेला( जीव, पुद्गलो )ने माछला वगेरेने पृथिवीनी जेम स्थितिमा सहायक थाय ने अधर्मास्तिकाय. अथवा विवक्षावडे जल. अहिं आ अनुमान छे:-गति ने स्थिति, कार्य होवाथी घटनी माफक अपेक्षा कारणवाळी छ. त्रण लोकमा जे पोलाण अथवा अभाव ए विपक्ष दृष्टांत छे. वळी कंडक विशेष अलोकनो स्वीकार कर्ये छते लोकना परिमा णने करनारा धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकायबडे बन्नेनो स्वीकार अवश्य थवो जोइए. जो स्वीकार नहिं करवामां आवे तो आकाश- समतोलपणुं छते लोक अथवा अलोक एवो भेद नहिं रहे. तेमज केवल आकाश छते गतिवाळा जीयो अने पुद्गलोने प्रतिघात( अटकाव )नो अभाव होवाथी कोई चौकस स्थान नहिं रहे; कारण के संबंधना अभावथी सुख, दुःख अने बंध वगरेनो संव्यवहार नहिं थाय. कयु छे के:तम्हा धम्माधम्मा, लोगपरिच्छेयकारिणो जुत्ता।इहराऽऽगासेतुल्ले,लोगोऽलोगोत्ति को भेओ?॥५॥ लोगविभागाभावे, पडिघाताभावओऽणवत्थाओ । संववहाराभावो, संबंधाभावओ होजा ॥५९॥
आ बन्ने गाथानो भावार्थ कहेवायेल छे. (मू०७-८) धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकायवडे उपकार कराएल जे लोकवर्ती संसारी जीव, दंड सहित अने सक्रिय छे ते कर्मवडे बंधाय छे; माटे हवे बंधनुं निरूपण करवामां आवे छे:-'एगे बंधे बंधावू ते बंध. कपाय सहितं होवाथी जीव, जे कमने योग्य पुद्गलोने ग्रहण करे छे ते बंध एवो तात्पर्य छे. ते बंध प्रकृति, स्थिति, प्रदेश
१. प्रत्यक्ष प्रमाणथी गति, स्थिति सिद्ध करोने हवे अनुमान प्रमाणथी सिद्ध करे छे. २. दंडादि सहितनो अपेक्षाए.
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