________________
Shri Mahavir Jain Nadhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
www.kobatirth.org
श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद
१. स्थाना| ध्ययने
एकानेका|त्मासिद्धिः २ सूत्रम्.
॥ १८॥
KOK
समस्तपणे जणाय छ ? के देशथी भिन्न जणाय छे ? जो सर्वात्मपणे कहेशो तो अवयवनी संख्या प्रमागे अवयवी द्रव्यनी संख्या थाय त्यारे अवयवी द्रव्यर्नु एकप' केम घटे ? अने देशी भिन्न कहेशो तो जे देशा(विभागो)वडे अवयवोमा अवयवी द्रव्य वत्त छे ते देशोमां पण ते केवी रीते प्रवत् छ ? देश के सर्वथी ? जो सर्वथी कहेशो तो पूर्वोक्त दोष आवे छे. जो देशथी कहेशो तो ते देशोमां पण केम थाय ? देशथी तेना देशोमां तेना देशोमां, एम विकल्पो करवाथी | अनवस्था दोष थाय छे. समाधानचे विकल्पवडे अवयवी द्रव्यर्नु जे अघटमान कयुं ते तमारं कथन अयुक्त छे. अमे
एकांतथी भेद अथवा अभेदनो स्वीकार ज करता नथी. अवयवोज तथाविध एकपरिणामपणे (एक पिंडरूपे रहेवाथी) अवयवी द्रव्यपणे व्यवहार कराय छ अने ते (अवयवो ) ज तथाविध भिन्न भिन्न परिणामोनी अपेक्षाए अवयवो कहवाय छे. अवयवी द्रव्यनो अभाव स्वीकार कर्ये छते आ घडाना अवयवो छ अने आ वस्त्रना अवयवो छे एम जे भिन्नता अनुभवाय छे ते थई शकशे नहि. तेमज अमुक समये अमुक ज कार्य करवानी इच्छावाळाओने चोकस करेल वस्तुनुं ग्रहण नहि थाय; अने कोई पण जातना कार्यनो नियम ज नहि रहे. सन्निवेश( वस्तुविषयना संकेत )थी घटादिना अवयवोनी प्रतिनियतता-प्रत्येकमां नियम| पणुं थशे एम जो कहो तो ते सत्य छ, कारण के तेज सन्निवेश विशेष अवयवी द्रव्य छे. बली विरुद्ध धर्मनो अध्यास एज
भेदन कारण छ, एम जे कहेलं ते पण बरोबर नथी केम के प्रत्यक्ष ज्ञानने परमार्थ[ प्रत्यक्ष ]नी अपेक्षाए भ्रांतपणुं छे अन संव्यवहार प्रत्यक्ष ]नी अपेक्षाए अभ्रांतपणुं छे. भ्रांतत्व अने अभ्रांतत्वनो अमारावडे स्वीकार कराएलो होवाधी जो तमे कहेशो
१. अहि कथंचित् अभेद पक्ष कह्यो. २ अहि कचित् भेद वह्यो.
XXXXXXXX
५
॥१८॥
For Private and Personal Use Only