________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
XXXR
MARKARMAKARXXXXXXXXXXXXXXXXX
तो१ मृषाप्रत्यया, २ अदत्तादानप्रत्यया, ३ आध्यात्मिकी, ४ मानप्रत्यया, ५ मित्रद्वेषप्रत्यया, ६ मायाप्रत्यया, ७ लोभप्रत्यया,८ ऐर्यापथिकी-आ प्रमाणे आठ प्रकारे क्रिया कहेल छे. तेनुं एकपणुं तो करण मात्रना समानपणाथी जाणवू. दंड अने क्रियानुं विशेष स्वरूप तेना विवरण प्रसंगे ज कहेशुं. आत्माने अक्रियवानपणुं माननारनुं खंडन आ प्रमाणे छः-जेओए निश्चय आत्मानुं अक्रियवानपणुं स्वीकारेल छे तेम तेओए भोक्तपणुं स्वीकारेल छे. भोक्तपणुं स्वीकारवाथी भोगक्रियानी उत्पत्तिनुं सामर्थ्य छते भोक्तापणुं उत्पन्न थाय छे. ते ज क्रियापणुं छे. हवे वादी कहे छे के:-प्रकृति करे छे अने पुरुष (आत्मा) भोगवे छे. प्रतिबिंब न्यायवडे ए प्रमाणे कहे, अयुक्त छे, कारण के कथंचित् सक्रियपणा विना प्रकृतिनो संबंध छते पण प्रतिबिंबभावनी उत्पत्ति नहीं थाय; केमके रूपांतरनुं परिणमनरूप प्रतिबिंब छे. वळी जो कहेशो के प्रकृतिना विहाररूप बुद्धिथी ज सुखादि अर्थन प्रतिबिंब पडे छे, परंतु आत्माथी प्रतिबिंब पडतुं नथी. त्यारे आत्मानुं ते स्थितिमा रहेवापणुं होवाथी भोक्तृत्व घटी शकशे नहि. अहि घणुं कहेवार्नु छे ते तो स्थानांतरथी जाणवू. (सू०४) उक्त स्वरूप विशिष्ट आत्माना आधारनुं स्वरूप निरूपण करवा माटे कहे छ:-' एगे लोए ' असंख्यात प्रदेशवडे अने अधो, तिर्यग आदि दिशाना भेदवडे विवक्षा न करवाथी एक लोक छे. लोक्यते-केवळज्ञानवडे जे जोवाय छे ते लोक. ते धर्मास्तिकायादि द्रव्योनो आधारभूत आकाशविशेष छे. आ संबंधमां वा छ-जे क्षेत्रमा धर्मास्तिकायादि द्रव्यांनी प्रवृत्ति थाय छे ते क्षेत्र ते द्रव्यो सहित लोक कहेवाय छे अने तेथी विपरीत (एकला आकाशनी प्रवृत्ति होय ) ते अलोक." अथवा लोक, नामादि भेदथी आठ प्रकारे छे. कर्तुं छे के:
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
EXEKXE
For Private and Personal Use Only