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षट्खंडागम की शास्त्रीय भूमिका
से सब सिद्धान्त पढ़ा दिया । यह श्रुताभ्यास आषाढ़ शुक्ला एकादशीको समाप्त हुआ और उसी समय भूतों ने पुष्पोपहारोंद्वारा शंख, तूर्य और वादित्रों की ध्वनि के साथ एक की बड़ी पूजा की । इसी से आचार्यश्री ने उनका नाम भूतबलि रक्खा । दूसरे की दंतपंक्ति अस्तव्यस्त थी, उसे भूतों ने ठीक कर दी, इससे उनका नाम पुष्पदन्त रक्खा गया । ये ही दो आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि षट्खण्डागम के रचयिता हुए।
इन दोनों ने धरसेनाचार्य से सिद्धान्त सीखकर ग्रंथ-रचना की, अत: धरसेनाचार्य उनके शिक्षा गुरु थे। पर उनके दीक्षागुरु कौन थे इसका कोई उल्लेख प्रस्तुत ग्रंथ में नहीं मिलता । ब्रह्म नेमिदत्त ने अपने आराधना-कथा कोष में भी धरसेनाचार्य की कथा दी है। उसमें कहा है कि धरसेनाचार्य ने जिस मुनिसंघ को पत्र भेजा था उसके संघाधिपति महासेनाचार्य थे और उन्हीं ने अपने संघ में से पुष्पदन्त और भूतबलि को उनके पास भेजा। यह कहना कठिन है कि ब्रह्म नेमिदत्त ने संघाधिपति का नाम कथानक के लिये कल्पित कर लिया है या वे किसी आधार पर से उसे लिख रहे हैं।
बिबुध श्रीधर ने अपने श्रुतावतार में भविष्यवाणी के रूप में एक भिन्न ही कथानक दिया है जो इस प्रकार है -
इसी भरत क्षेत्र के वांमिदेश (ब्रह्मदेश ?) में वसुंधरा नाम की नगरी होगी। वहां के राजा नरवाहन और रानी सुरुपा को पुत्र न होने से राजा खेदखिन्न होगा। तब सुबुद्धि नाम के सेठ उन्हें पद्मावती की पूजा करने का उपदेश देंगे । राजा के तदनुसार देवी की पूजा करने पर पुत्रप्राप्ति होगी और वे उस पुत्र का नाम पद्म रक्खेंगे । फिर राजा सहस्त्रकूट
चैत्यालय बनवावेंगे और प्रतिवर्ष यात्रा करेंगे। सेठ जी राज प्रासाद से पद पद पर पृथ्वी को जिन मंदिरों से मंडित करेंगे । इसी समय बसंत ऋतु में समस्त संघ वहां एकत्र होगा और राजा सेठजी के साथ जिनपूजा करके रथ चलावेंगे। उसी समय राजा अपने मित्र मगधस्वामी को मुनीद्र हुआ देख सुबुद्धि सेठ के साथ वैराग्य से जैनी दीक्षा धारण करेंगे। इसी समयएक लेखवाहक वहां आवेगा । वह जिन देवोंको नमस्कार करके व मुनियों की तथा (परोक्ष में) धरसेन गुरु की वन्दना करके लेख समर्पित करेगा । वे मुनि उसे वांचेंगे कि गिरिनगर के समीप गुफावासी धरसेन मुनीश्वर आग्रायणीय पूर्व की पंचम वस्तु के चौथे प्राभृतशास्त्र का व्याख्यान प्रारम्भ करने वाले हैं। धरसेन भट्टारक कुछ दिनों में नरवाहन और सुबुद्धि नाम के मुनियों को पठन, श्रवण और चिन्तनक्रिया कराकर आषाढ़ शुक्ल एकादशी को शास्त्र समाप्त करेंगे । उनमें से एक की भूत रात्रि को बलिविधि करेंगे और दूसरे के चार दांतों को सुन्दरबना देंगे । अतएव भूत-बलि के प्रभाव से नरवाहन मुनि का नाम भूतबलि और चार