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प्रस्तावना
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अमितिगतिका पंचसग्रह संस्कृनमें होनेके कारण इमे प्राकृत पंचसग्रह कहते हैं । यह गद्य-पद्य उभयरूप है। इसमें गाथाएँ १३०० से अधिक है ।
इसके अन्तके दो प्रकरण शतक और मप्ततिका कुछ पाठभेदके साथ श्वेताम्बर परम्परामें प्रचलिन शतक और सप्ततिकासे मिलते जुलते है । तार्थसूत्र के बाद ये ही दो ग्रन्थ ऐसे मिले है जिन्हें दोनों परम्पराओंने स्वीकार किया हैं । दिगम्बर परम्परामें प्रललित इन दोनों प्रयोका स्वयं पंचसंग्रहकारने संग्रह किया हैं या पचसमहकारने इन पर केवल भाष्य लिया है इसका निर्णय करना कठिन है। इसके लिये अधिक अनुसन्धानकी श्रावश्यकता है 1
दोनों सप्तिका में पाठभेद और उसका कारण - प्रस्तुत नप्ततिकामें ७२ और दिगम्बर परम्पराकी सप्ततिकामै ७१ गावाएं है । जिनमेंमे ४० से अधिक गाथाएँ एकसी हैं । १४-१५ गायओंमें कुछ पाठभेद है। शेष गाथाएँ जुदी जुड़ी है। इसके कारण दो हैं, मान्यता भेह और वर्णन करने की शैली में भेद ।
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मान्यता भेदके हमें चार उदाहरण मिले हैं। यथा-
१ - प्रस्तुत सप्ततिका में निद्राद्विकका हृदय क्षपकश्रेणिमें नहीं होता इस मतको प्रधानता देकर मग बतलाये गये हैं किन्तु दिगम्बर परम्पराकी सप्ततिका क्षपकश्रेणिमें निद्वाद्विकका उदय प्रधानता देकर भंग बतलाये गये हैं ।
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२- प्रस्तुत सप्ततिकामें मोहनीयके उदयविकer और पदवृन्द दो प्रकारसे बतलाये गये हैं किन्तु दिगम्बर परम्पराकी सप्ततिकामें वे एक प्रकारके ही बतलाये गये है ।
३- प्रस्तुत सप्ततिका में नामकर्म के १२ ह्दयस्थान बतलाने गये हैं । कर्मकाण्ड में भी ये ही १२ उदयस्थान निवळू किन गये हैं । किन्तु दिगम्बर परम्पराको सप्ततिका २० प्रकृतिक हृदयस्थान छोड़ दिया गया है ।
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