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- प्रस्तावना
अलभ्य ग्रन्थ १ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति टीका ४ तत्वार्थाधिगम सूत्र टीका २ श्रोधनियुकि टीका ५ धर्मसारप्रकरण टीका ३ विशेषावश्यक टीका ६ देवेन्द्रनरकेन्द्रकप्रकरण टीका ___ मलयगिरि सूरिकी टीकाभोंको देखनेसे मन पर यह छाप लगती है कि वे प्रत्येक विषय का वही ही सरलताके साथ प्रतिपादन करते हैं। जहाँ भी चे नये विषयका सकेन करते हैं वहाँ उसकी पुष्टिमें प्रमाण अवश्य देते हैं। उदाहरणार्थ मूक सक्षतिकासे यह सिद्ध नहीं होता कि स्त्रोवेटी जीव मरकर सम्पदृष्टियों में उत्पन्न होता है। दिगम्बर परम्परा की यह निरपवाद मान्यता है। श्वेताम्बर मूल अन्यों में भी यह मान्यता इसी प्रकार पाई जाती है। किन्तु श्वेताम्बर टोकाकारोंने इस मतको निरपवाद नहीं माना है। उनका कहना है कि इस कपनका सप्ततिकामें बहुल TIको अपेक्षा निर्देश किया गया है। भाचार्य महागिरिने भी अपनी वृत्ति इपी पद्धतिमा भनुपरण किया है। किन्तु इसकी पुष्टिमें तत्काल उन्होंने पूर्णिका सहारा ले लिया है। इसमें सप्ततिका चूर्णिका उपयोग तो किया हो गया है, किन्तु इसके अलावा सिद्धहम, तवार्थाधिगमको सिद्धमनीय टीका, शतमबृहच्चूर्णि, सत्कर्मअन्य, पचसमहमू-टोका, कर्मप्रकृति, आवश्यकचूर्णि, विशेषावश्यक भाष्य, पचलग्रह और कर्मप्रकृतिचूर्णि इन ग्रन्थोंका भी भरपूर उपयोग किया गया है। इसके अलावा बहुनसे अन्योंके उल्लेख 'उकंच' कहकर दिये गये हैं। तात्पर्य यह है कि मूल विषयको स्पष्ट करने के लिये यह वृत्ति खूब सजाई गई है। प्राचार्य मलयगिरि भाचार्य हेमचन्द्र और महाराज कुमारपालदेवक समकालीन माने जाते हैं। इनकी टीकाओं के कारण श्वेताम्बर जैन वाड्मयके प्रसार करने में बड़ी सहायता मिली है। हमें यह प्रकाशित करते हुए प्रसन्नता होती है कि सप्ततिकाका प्रस्तुत अनुवाद भाचार्यमलयगिरिका इसी वृत्ति के माधारमे लिखा गया है।