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अजीव २ जीव की अजीव के साथ अपणेशका नाम आश्रव । दोनों में परस्पर मेल होलेने का नाम बन्य है ४ नीव अजीव के लाथ अपणेश दिखलाना छोड़ देवे उसका नाम सम्बर ५ ताकि वह अजीव इस जीव से क्रमशः दूर होने लगे उसका नाम निर्जरा और अजीव से जीव सर्वथा छुटकारा पाजावे उसका नाम मोक्ष है इस प्रकार ये सात तत्व कहलाते हैं मतलब यह कि आत्मा को अपने भले के लिये इन सातों का जानना
आवश्यक है। मूलंसुधीन्द्राश्चिदचिवयन्तु द्वयोरवस्थाअपराः श्रयन्तु ।। विदात्मकंचेतनपर्यंयन्तद्वयात्मकंपौद्गलिकंचसन्तः ॥१८॥ ____ अर्थात्- उन सातों तत्वों मे से जीव और अजीव ये दो तो मूल भूत तत्व हैं ही वाकी के पांच तत्व इन दोनो की संयोग सापेक्ष अवस्थारूप हैं अत एव ये पांचो, द्रव्य और भाव के रूपसे दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं। भाव तत्व तो सम्बेदन रूप चेतन परिणाम और उस के द्वारा
सम्वेदन मे लाने योग्य जो द्रव्यतत्व है वे पुद्गल द्रव्य के • परिणाम होते है ऐसा सन्त पुरुष कहते है। जैसे की जीव के
राग द्वेष रूप परिणाम का नाम तो भावाश्रव और उसके निमित्त से पुद्गल यर्गणावों का कर्मरूप में परिणत होजाना सो द्रव्याश्रव है । उन कर्मों में आत्मा को परतन्त्र बनाकर रखने रूप शक्ति का नाम द्रव्य बन्ध और उनके द्वारा आत्मा की