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बिना उसके ध्यान के कैदी यो ही छूट गया तो यह गलत अर्थ है। वहां पर उसके ध्यान का पूरा प्रभाव होता है वैसे हो कर्मवर्गणावो पर भी जीव के कषाय भाव का प्रभाव होता है ऐसा जैन सिद्धान्त कहता है ।
देखो एक फोटोग्राफर अपने कैमरे मे फोटो लेता है तो जो आदमी उस कैमरे के सामने में जैसी अपनी चेष्टा बना कर बैठता है वैसी ही उसकी उस कैमरे मे परछाई पड़ती है अतः वैसा ही उस कैमरे में फोटो आता है वैसे ही यह जीव जैसे भी अपने कषाय भाव करता है वैसा ही उसका प्रभाव कर्म वर्गणावों पर पड़ता है अतः वैसी ही सुख दुःख वगेरह देने की शक्ति उनमें आती है ऐसी जैन दर्शन की मान्यता है । शङ्का - आपके कहने में तो एक द्रव्य अपने प्रभाव से दूसरे
द्रव्य को चाहे जैसा भी बना सकता है हमने तो सुना है कि कोई भी द्रव्य किसी द्रव्य मे कुछ भी नहीं कर
सकता ।
उत्तर - एक दूसरे को चाहे जैसा बना सकता है सो बात तो नहीं परन्तु एक दूसरे के लिये किसी भी हालत में कोई कुछ भी नहीं करता ऐसा भी जैन मत नहीं कहता । हमारे यहां तो कहा है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के गुणो को अपने प्रभाव से कभी नहीं बदल सकता जैसे कि जीव पुद्गल के साथ मिल कर उसको चेतन या रूपादि रहित कभी नहीं कर सकता तो पुद्गल भी जीव के साथ होकर उसको जड़ या रूपादि